ऐ जिंदगी तू ज्ञानज्योति का
ऐ जिंदगी तू ज्ञानज्योति का आधार बनाना
कसम तुझे मेरी जिंन्दगी से अंधकार मिटाना
अब मुझे खुद का पता नहीं रहता बेखुदी में
गुमसुम सा हो चला हूँ तू मुझको राह दिखाना
वक़्त पड़ने पर वो दोस्त निकल लिए सब मेरे
यारों ने सिखाया जिंदगी का नाम धोखा खाना
हौसले भी जंग लड़कर अब भारी से लगने लगे
तू मेरे साथ आ के कुछ तो इनका बोझ उठाना
तूने ही तो सिखाया था मन जीता तो जग जीता
मुझे भी एक दिन तू आ अपनी खुद्दारी जताना
काश मेरी शक़्ल पर तूने अक्ल लिख दी होती
सरसों मेरी हथेली पर आकर के अब तू उगाना
अशोक कभी शौक पथ पर चला ना था सुनले
नाम काफ़ी है हाथ आगे बड़ा गिरतों को थामना
चल आज तू मेरे सँग मेरी मीत बनकर मेरी साथी
होती है प्रीत की रीत कैसी दुनिया को तू ये बताना
अशोक कुमार सपड़ा हमदर्द की क़लम से