…..ऐ जिंदगी तु बड़ा सताती है…

ऐ जिंदगी तु बड़ा सताती है,
आंख मिचौली जैसे न जाने।
कितने खेल खिलाती है ,
ऐ जिंदगी तु बड़ा सताती है।
कभी नहर सी शांत तु दिखती,
कभी नदी सी चंचल।
कभी समुद्र के जैसी लहरें,
सबको को करती विचलित।
कभी जेठ की भरी दोपहरी,
कभी सावन की हरियाली।
कभी पूस की रात सा लम्बी ,
कभी बन बंसत खुशहाली।
सबको नाच नचाती रहती ,
करती तु मनमानी।
सबकी अक्ल ठिकाने करती
जिंदगी सच में तु बड़ी सयानी।
रुबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ