ऐ ज़िन्दगी ..
ऐ ज़िन्दगी
न जाओ अभी छोड़ कर
अभी कुछ अधरों पर
मुस्कान का आना बाकी है!
पुष्प खिले हैं अभी अभी
मुस्काई है कली अभी
तितलियों को बगीचे में
संसार बसाना बाकी है !
बदली तो छाई है नील गगन में
पर बूँद अभी तो गिरी नहीं
मंद समीर संग जीवन में
बहार तो आना बाकी है !
मुरझा रहे हैं पादप भी
पीतपर्ण का मोल नहीं
नवजीवन संग पत्तों में
कोपल का आना बाकी है !
लुप्त से सुर थे हर गीत के
बिछुड़ा है कोई अपने मीत से
बेसुरे जीवन के हर पल में
राग का आना बाकी है !
माटी भी सूखी है धरती की
ओस बिंदु भी सूख गए
अश्रुहीन इन नयनो में
सपनों को सजाना बाकी है !
लहरें उफान पर हैं सरिता की
डगमग करती नैय्या को
तट पर लाने की खातिर
पतवार चलाना बाकी है !
जीवित है – स्मृतियों में
कुछ चेहरे मेरे अपनों के
दे खुशियाँ जो लुप्त हुए
खुशियों के उन चेहरों का
उधार चुकाना बाकी है !
ठहर जा दो पल तो
ऐ ज़िंदगी
तेरे भी सजदे में अभी
सर को झुकाना बाकी है !
डॉ सीमा वर्मा