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12 Mar 2017 · 1 min read

*** ऐ चाँद ***

ऐ चांद ? तेरी रौशनी
दुनियां को शीतल कर दे
मेरे हृदय की आग को
क्यों ठण्डा नहीं करती
ऐ चांद ?क्या तुम भी
भेदभाव ? करते हो
इन्सां-इन्सां ?के बीच
रोशनी सब?के लिए है
मेरे लिए ? अंधेरा क्यूं
ऐ चांद खुदा जन्नत में है
मेरी शिकायत कह देना
कहते लोग नूर-ए-खुदा
जगमग जहां करता है
तूं भी तो उसी के नूर से
रोशन आसमां में होगा
ना दोष दूंगा मैं तुझको
एक चांद जमीं पर है जो
मुझको बेताब करता है
शायद उपरवाला भी
मुझसे से जलता है
इसीलिए मुझे बार-बार
छलता है छलता है
फिर भी मेरे अंदर वही
प्रेम पलता है पलता है
ऐ चांद उस बेखबर को
तो खबर कर दो जिसके
लिए ये दिल जलता है।।

?मधुप बैरागी

Language: Hindi
1 Like · 564 Views
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