ऐसे आंखों से अश्क जारी हैं
एक मतला दो शेर
कितने मुश्किल से दिन गुज़रते हैं
तेरी उल्फत मैं हम तड़पते हैं
एक पल के लिये तो आ ज़ालिम
हम तिरी दीद को तरसते हैं
ऐसे आँखों से अश्क जारी हैं
जैसे बादल कहीं बरसते हैं
इरशाद “आतिफ” अहमदाबाद
एक मतला दो शेर
कितने मुश्किल से दिन गुज़रते हैं
तेरी उल्फत मैं हम तड़पते हैं
एक पल के लिये तो आ ज़ालिम
हम तिरी दीद को तरसते हैं
ऐसे आँखों से अश्क जारी हैं
जैसे बादल कहीं बरसते हैं
इरशाद “आतिफ” अहमदाबाद