ऐसी रचना हो
जिसे पढ़कर मन कुंदन हो,
अटुट बंधन हो,
सारा जीवन धन्य हो,
ऐसी रचना हो ……
जिसमें
प्रेरणा,
उत्साह,
साहस,
करुणा,
प्रेम,
धैर्य,
आशा,
विश्वास,
ईमानदारी,
कड़वी सच्चाई,
अनंत खुशियां हो,
ऐसी रचना हो ……
नया सूर्य,
नई सुबह,
नया चन्द्रमा,
नई संध्या,
नया जीवन हो,
ऐसी रचना हो……..
भाईचारा ,
सच्ची मित्रता,
माँ की ममता,
बाप का फ़र्ज़,
बहन का प्यार,
हर रिश्तो की अहमियत हो,
ऐसी रचना हो ……….
कलियुग में सिया हो,
खुश्बु कुसुम की हो,
आसमां में रेवती हो,
हर रोज लेखनी में
दुष्यंत के जीवन में
सौरभ,
कुंदन,
चन्दन हो,
ऐसी रचना हो…..
बुराई को लड़ सके
ऐसी अपार शक्ति हो,
लोगो के
मन,
दिल में श्रद्धा भक्ति हो,
सारा जहां में शांति हो
ऐसी रचना हो……
मिट न सके इतिहास,
कवि की लेखनी
इतना प्रखर हो,
मन गंगा सा निर्मल हो,
मंगल-मंगल हो,
ऐसी रचना हो ….
@@ चित्रांश @@