ऐसी कोई बात
आओ बैठो
सुनें सुनाएं
तेरी मेरी
इसकी उसकी
सारे जग की
छलिया ठग की
सुनी अनसुनी
कही अनकही
नई पुरानी
सुखद सुहानी
अबूझ पहेली
कुछ अलबेली
दर्द जो छलका
दिल हो हल्का
सुकून से भरी
नील अम्बरी
मन हों मिलते
फूल से खिलते
तेरे मेरे
सपन सुनहरे
मिलते हों जज़्बात
ऐसी कोई बात ।
अशोक सोनी
भिलाई ।