ऐसी अल्हड़ सी चाहत है।
सबको सोने की फुरसत है
मेरा ख्वाबों से निसबत है।
जलकर सूरज सा चमकूं मैं
ऐसी अल्हड़ सी चाहत है।
तुमको कब मैंने इश्क़ कहा
तुमसे तो मेरी अस्मत है।
है मुमकिन कि तुम्हें चूम लूं
पर फूटी मेरी किस्मत है।
तुम गर डालो बांह गले में
तो इस धरती पे जन्नत है।
©®दीपक झा रुद्रा ❤️