ऐसा सावन खो गया
ऐसा सावन खो गया, जब खिलते थे फूल ।
रिश्तों में थी मधुरता, कभी नहीं थे शूल ।।
पेड़ो पर झूले नहीं, नहीं बचा आनंद ।
ऐसा सावन खो गया, जब गाते थे छंद ।।
रिमझिम रिमझिम न बरसे, सावन की बौछार ।
ऐसा सावन खो गया, कैसे हो त्यौहार ।।
बाहर सब जन बैठकर, करते थे दो बात ।
ऐसा सावन खो गया, गुमसुम बैठे तात ।।
रही नहीं बाजार की, पहले जैसी धूम ।
मोबाइल का दौर है, घर बैठे जग घूम ।।
पहले जैसा खुशनुमा, बचा नहीं माहौल ।
बात बात पर झगड़ते, ऐसे इनके बोल ।।
—–जेपीएल