Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Aug 2021 · 5 min read

ऐसा लगता कल की ही बात हो

बात 1995-96 की है, जब मैं कक्षा 8 वी में माध्यमिक शाला गाँगाहोनी , तहसील- ब्यावरा, जिला राजगढ़ म.प्र. में पढ़ता था । उस समय आसपास के गाँवो में प्राथमिक शाला ही होती थी । अतः गाँगाहोनी में आस पास के गाँव जैसे- उमरेड, कड़ियाहाट, बैरियाखेड़ी, शमशेरपुरा, सलेहपुर, तरेना, नादनपुर, इत्यादि के बच्चे पढ़ने आते थे ।
इस विद्यालय में इतनी अच्छी पढ़ाई होती थी, कि जैसे कोई प्रायवेट विद्यालय हो । शिक्षक कम ही थे , फिर भी पढ़ाई में कभी कमी नही आती थी । इस माध्यमिक शाला में बरसों तक केवल दो शिक्षक श्री रामलाल वर्मा और श्री जी एस लववंशी ही पढ़ाते आ रहें थे । हम जब हम 8 कक्षा में थे, तब कुछ नए शिक्षक श्री महेश शर्मा, श्री पीएस लववंशी, एन एल खटानिया जी,आदि आ गए थे ।
खेलकूद, नाटक, सभी प्रकार की गतिविधियां यहां संचालित होती थी । यहाँ के प्रतिभावान छात्र छात्राएं जिले स्तर और प्रदेश स्तर तक अपनी धाक जमाए रखते थे ।
इन दिनों साक्षरता अभियान खूब चला था । गाँव की दीवारों पर नारा लेखन से लेकर रात्री कालीन शाला भी हम संचालित करते थे । 26 जनवरी और 15 अगस्त को प्रभात फेरी और सांस्कृतिक कार्यक्रमो में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे ।
बात स्कूल की हो और मंगू पुरी की होटल को भूल जाए, ऐसा हो नहीं सकता है । दोपहर में चाय के साथ टोस्ट खाने का अलग ही आनन्द था । दोपहर के लंच ब्रेक में खाने की किसको चिंता रहती थी । चिंता तो इस बात की लगी रहती थी, कि सर विज्ञान के प्रश्न पूछेंगे,नहीं बताने पर बहुत ही अच्छी खातिरदारी होगी ।
26 जनवरी के दिन किसी विधा में इनाम के रूप में स्केल, पेंसिल या कॉपी मिल जाती थी, तब इतनी खुशी होती थी, जिसका वर्णन नही किया जा सकता है ।
हमारे विद्यालय में केवल दो ही कमरे थे और बाहर एक लंबी सी दिलान थी । दोनों कमरों में कक्षा 7 और 8 लगती थी और बाहर कक्षा 6 लगती थी । यह सोचकर आश्चर्य होता है कि एक कमरे में 50 कैसे बैठते होंगे (एक कक्षा में 50 से कम छात्र नही होते थे) , किन्तु सबसे बड़ा आश्चर्य तो तब होता था, की जब जीएस सर तीनो कक्षाओं को अंग्रेजी पढ़ाने के लिए एक ही कमरे में बिठाते थे और सब बैठ भी जाते थे । जो बच्चे बच जाते थे या कमरे में घुस नही पाते थे , उन्हें दो बड़े लड़को के बीच अच्छे से दबाकर बिठाया जाता था ।
गिरते पानी में 3 किलोमीटर पैदल चलकर कीचड़ में चलना कितना सुकून देता था, उसका अहसास आज होता है, उस आनन्द की तुलना कार में घूमने के आनन्द से भी कहीं अधिक होती थी ।
सब बच्चें शिक्षक का बहुत सम्मान करते थे । शिक्षक भी पढ़ाई पूरे मन के साथ करवाते थे । एक बार वर्मा सर बीमार थे, किन्तु दूसरे सर के अवकाश पर रहने के कारण बीमार अवस्था मैं ही पढ़ाने आए थे, उस दिन उन्होंने मुझसे बोर्ड पर लिखवाया था, स्वयं बोलते गए थे ।
एक बार कक्षा 7 के समय किसी बच्चे ने सर के बैठने की कुर्सी पर चाक से धनुष बना दिया था, उस पर सर ने बहुत दिनों तक पूरी कक्षा को सजा के तौर पर खड़ा रखा था, किन्तु आज तक पता नहीं चला था, कि वह धनुष किसने बनाया था । हालांकि मुझे पता था, किन्तु बताया नही ।
एक बार कुछ शरारती छात्रों ने मेरे बैग में खाने के बाद अचार के छिलके बेग में डाल दिये थे, खैर इसकी शिकायत मैने नहीं की थी, किन्तु छिलके सम्भाल कर रख लिए थे ।
एक बार पूरी क्लास को पिकनिक के लिए पनियारा ले जाने का निश्चय हुआ । पनियारा, जंगल मे स्थित एक सुंदर स्थान है, जहाँ चारो तरफ बड़े- बड़े पेड़ , एक सुंदर सा पानी का कुंड, ऋषि मुनियों का आश्रम, मंदिर, जामुन के पेड़, बड़ा सा पीपल का पेड़, जिस पर मधुमक्खियों ने अपना घर बना रखा है । यह स्थान उमरेड, पातलापनी,गांगाहोनी, खजूरखाडी , जोधपुर इत्यादि के समीपस्थ ही जंगल मे स्थित है ।
हम सब पिकनिक पर जाने के लिए बहुत उत्साहित थे, एक दिन पहले से ही जाने की तैयारी पूरी कर ली थी । अगले दिन सब स्कूल से पिकनिक के लिए पैदल ही चल दिये, कितना आनन्द भरा दिन था, शायद कभी नहीं भूल सकता हूँ । हम सब बातें करते हुए चले जा रहे थे, हमारे साथ हमारे शिक्षक साथ थे, जो हम सबका ख्याल रख रहे थे । गाँव से खेत पार करते हुए , हम सब जंगल मे पहुँच गए थे, यहाँ थोड़ा संभल कर चले जा रहे थे, क्योंकि रास्ते मे पत्थर , मिट्टी, कांटे आदि पड़े हुए थे । बीच में शिक्षक रोककर एक बार गिनती कर लेते थे । हम सब अब पनियारा पहुँच गए थे। सबने कुंड देखा, मंदिर में दर्शन किये, कुंड में कूदकर नहाना मना था, इसलिए बाल्टी से पानी खींचकर ही हम सब नहाए । एक साथी शायद रामकैलाश बाल्टी खींचते समय जानबूझकर कुंड में कूद गया, ताकि कूदकर नहा सके । इसके बाद सबने अपने टिफिन खाये, वही पेड़ो के नीचे बैठकर । इसके बाद हम सबने केले, नींबू के पेड़ों के पास फोटो खिंचवाए । हम सब स्कूल ड्रेस खाकी पेंट और सफेद शर्ट पहनकर आए थे । अब हम सब वापसी के लिए तैयार थे, एक बार पुनः हमारी गिनती हुई और घर के लिए हम सबने कूच किया । पैदल चलते – चलते हम सब बहुत थक गए थे, किन्तु आनन्द और खुशी के आगे थकावट का अहसास नही हुआ ।
स्कूल से लौटते समय अनाज की डालिया इकठ्ठा कर लेते थे, उन्हें कूटकर बेच देते थे, जिससे सरस्वती पूजन के 1/2 रुपये निकल आते थे ।

वो दिन बहुत याद आते है। आज 25 बरस हो गए , किन्तु आंखों के सामने वो कक्षा 8 की क्लास हटती ही नही है, हम सब पढ़ रहे है….वो सब मित्र बैठे हुए है….जो मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहे है…1, 2 ,3……48,49 पूरा कमरा भरा हुआ है । श्री रामलाल जी विज्ञान पढा रहे है….
जो मुझे दिखाई दे रहे है वे सब साथी निम्नानुसार है—( कक्षा 8– साल–95/96)

1. नारायण सिंह ( क्लास मॉनिटर),2. इंदर सिंह,3. कृष्ण गोपाल,4. अरविंद, 5. विष्णु, 6. धीरप, 7. छोटेलाल, 8. अवध, 9.कमलेश,10. पूनम चंद,11. राजेन्द्र,12. बापूलाल, 13. रमेश,14. रामबाबू, 15. नवल, 16. कन्हैयालाल, 17. हेमलता, 18.राजकुमार, 19. गोविंद, 20. लोकेश, 21. रामेश्वर, 22. धर्मेंद्र, 23. सुधा, 24. ओमहरी, 25. चित्रा, 26. रुक्मणि, 27.ज्योति, 28. नीतू, 29. शोभा, 30. विनोद, 31. पवन, 32. गोविंद, 33. अर्जुन
,34. धीरप, 35. रामबाबू, 36. कृष्णा, 37. बदाम, 38. बनेसिंह, 39. दौलतराम, 40.भारत, 41. छोटेलाल, 42. रामकैलाश
43. कृष्णा, 44. जगदीश, 45. कमलसिंह
46. चंदर सिंह, 47. रमेश, 48. दौलतराम
49. प्रताप, 50. राजेन्द्र, 51. मथुरा प्रसाद
52. राजेन्द्र
कुछ धुँधली यादों में याद नही आ रहे है ।
सभी मित्र खुश रहें, जहाँ भी रहें आनन्द से रहें…..
——जेपी लववंशी

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 416 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from जगदीश लववंशी
View all
You may also like:
मेरे एहसास
मेरे एहसास
Dr fauzia Naseem shad
हम चुप रहे कभी किसी को कुछ नहीं कहा
हम चुप रहे कभी किसी को कुछ नहीं कहा
Dr Archana Gupta
That Spot
That Spot
Tharthing zimik
मैं तुम्हें लिखता रहूंगा
मैं तुम्हें लिखता रहूंगा
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
*चाल*
*चाल*
Harminder Kaur
वो तो नाराजगी से डरते हैं।
वो तो नाराजगी से डरते हैं।
सत्य कुमार प्रेमी
बो
बो
*प्रणय*
ऐ हवा तू उनके लवों को छू कर आ ।
ऐ हवा तू उनके लवों को छू कर आ ।
Phool gufran
कागज ए ज़िंदगी............एक सोच
कागज ए ज़िंदगी............एक सोच
Neeraj Agarwal
रामभक्त हनुमान
रामभक्त हनुमान
Seema gupta,Alwar
ना तो कला को सम्मान ,
ना तो कला को सम्मान ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
लघुकथा -
लघुकथा - "कनेर के फूल"
Dr Tabassum Jahan
सबको बस अपनी मेयारी अच्छी लगती है
सबको बस अपनी मेयारी अच्छी लगती है
अंसार एटवी
प्रेमी चील सरीखे होते हैं ;
प्रेमी चील सरीखे होते हैं ;
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
बुंदेली लघुकथा - कछु तुम समजे, कछु हम
बुंदेली लघुकथा - कछु तुम समजे, कछु हम
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
हिंदी दिवस - 14 सितंबर
हिंदी दिवस - 14 सितंबर
Raju Gajbhiye
भोपालपट्टनम
भोपालपट्टनम
Dr. Kishan tandon kranti
3550.💐 *पूर्णिका* 💐
3550.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
धरती पर स्वर्ग
धरती पर स्वर्ग
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*सबके भीतर हो भरा नेह, सब मिलनसार भरपूर रहें (राधेश्यामी छंद
*सबके भीतर हो भरा नेह, सब मिलनसार भरपूर रहें (राधेश्यामी छंद
Ravi Prakash
एक पति पत्नी के संयोग से ही एक नए रिश्ते का जन्म होता है और
एक पति पत्नी के संयोग से ही एक नए रिश्ते का जन्म होता है और
Rj Anand Prajapati
तारीफ किसकी करूं
तारीफ किसकी करूं
कवि दीपक बवेजा
आ जाती हो याद तुम मुझको
आ जाती हो याद तुम मुझको
gurudeenverma198
Millions of people have decided not to be sensitive. They ha
Millions of people have decided not to be sensitive. They ha
पूर्वार्थ
रेत मुट्ठी से फिसलता क्यूं है
रेत मुट्ठी से फिसलता क्यूं है
Shweta Soni
अभी बाकी है
अभी बाकी है
Vandna Thakur
हिन्दी ग़ज़लः सवाल सार्थकता का? +रमेशराज
हिन्दी ग़ज़लः सवाल सार्थकता का? +रमेशराज
कवि रमेशराज
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
तमन्ना पाल रखी थी सबको खुश रखने की
तमन्ना पाल रखी थी सबको खुश रखने की
VINOD CHAUHAN
न्यूज़
न्यूज़
rajesh Purohit
Loading...