” ऐसा भी एक किरदार “
लड़कियां कहती हैं लड़की होना आसान नहीं होता ,
लड़के कहते हैं लड़का होना आसान नहीं होता ,
अरे ! ये क्यों भुल जाते हो बुद्धु ,
इन दोनों के बिना जीवन – संसार नहीं होता ।
लड़का हो तो पढ़ाई-लिखाई , मेहनत-मजदूरी , जीवन यापन रोजगार और कंधे पर घर का भार हैं होता ।
लड़की हो तो पढ़ाई-लिखाई , रोजगार का ज्यादा पता नहीं लेकिन गृहणी बनने का पुरा अधिकार हैं होता ।
18 के बाद लड़के को कोई बैठा कर नहीं खिलाता ,
20 होते होते लड़की की डोली जरूर उठ जाता ,
भोगी बनने का की चाह में ,
अपने जिम्मेदारियों का टोकरा एक – दूजे पर डाल दिया जाता ।
एक पिता अपनी को बिदा कर ,
एक अंजान परिवार से पुत्रबधु है लाता ,
दो पूरक संस्कारों का मेल ,
एक अद्भूत गृहस्थी बसाता ।
परंपराओं , जज्बातों और संस्कारों के इस लेन-देन में ,
कुछ ऐसा ही किरदार समझ में है आता ,
शायद इसीलिए ही उस विधाता ने ,
इस सृष्टि का नाप-तोल का पैमाना नर-नारी से है ज्ञाता ।
अपना किरदार लगभग सब कोई कुछ इस तरह है निभाता ,
गृहस्थी बनाने की चेष्टा बचपन से ही मस्तिष्क में भर दिया जाता ,
लड़की को जननी और लड़के को सहभागी है बनाता ,
ऐसा भी एक किरदार जन्म से ही निभाने को है सिखाया जाता ।
? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति✍️