ऐसा निराला था बचपन
दादी नानी के लाङ में पनपता
बात बात पर खिलखिला हॅसता
अपनी छोटी सी दुनिया में मस्त
ऐसा निराला था बचपन
गलियों में साथियों संग खेलता
कंचों और गोलियों की जंग जीतता
बाबा की मीठी झिङकियां सुनता
ऐसा निराला था बचपन
आज भी पुराने साथियों से याराना है
संदूक में छुपा पतंगों का खजाना है
प्यारा सपना जो सोते से जगाता
ऐसा निराला था बचपन
गुज़रो जो बीती गलियों से
बचपन फिर फिर बुलाता है
ज़बान पर उस छोटी सी
टाफी का स्वाद घुल जाता है
सच में बचपन तो ऐसा ही था
चित्रा बिष्ट