ऐसा क्यों होता है
ऐसा क्यों होता है।
क्यों बंधन दिल पर हो?
क्यों गुनाह दिल से हो?
क्यों रखा पर्दे में?
क्यों रहम कातिल से हो?
आखिर क्यों हुआ ऐसा?
क्यों कत्ल कर रोता है?।
ऐसा क्यों होता है ?।।
क्यों मजबूरी घर की हो?
क्यों दूरी सफर की हो?
क्यों काँटें चुभते हैं?,
क्यों धूरी डगर की हो?
आखिर क्यों चलता रहें?
काफिर कब सोता है? ।
ऐसा क्यों होता है ?।।
क्यों धोखे में रखा जाए?
कैसे क्यों बात छुपाए?
बने थे अपने क्यों?,
क्यों गैररत फिर दिखलाए?
आखिर क्यों किसी के?
दिल ये ग़म ढ़ोता है ।
ऐसा क्यों होता है ।।
क्यों दुनिया अब ऐसी है?
क्यों दीन को जख्म देती है?
क्यों अब इसमें जीएं?
जहाँ जिंदगी ऐसी तैसी है
आखिर क्यों गले लगा?
सीने में खंजर चुभोता है ।
ऐसा क्यों होता है ।।
रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’