ऐसा क्यों होता हैं?
ऐसा क्यों होता है?
उससे जुड़े रहने का मन करता है।
साधारण दिखती पर, गुणों की भण्डार हैं।
उसके गुणों में रम जाने का मन करता है।
उसके ख्वाबों को हकीकत बनाने का मन करता है।
उसके हर खुशियों को स्थायी बनाने का मन करता है।
जब मिलु उससे और उसका हो जाने का मन करता है।
लेकिन ऐसा क्यों होता हैं?
जब पास हो वो दुनिया भूल जाने का मन करता है।
उसके साथ हर लम्हा बिताने का मन करता है।
दूर तक किसी सफर पे जाने का मन करता है।
मेरे उसके बीच कोई आये, उसे दूर ले जाने का मन करता है।
पर ऐसा क्यों होता है?
संग उसके जब खाऊ, स्वादिष्ट पकवान फीके लगते है।
थोड़ा चख लू सब उसको खिलाने का मन करता है।
देर तक उसके साथ वक़्त गुजारने का मन करता है।
जाने लगे वो जब, किसी बहाने से रोक लेने का मन करता है।
ठहरने पर उसके, मन प्रफुल्लित होने लगता है।
लेकिन ऐसा क्यों होता है?
उसके हर खुशी में शामिल होने का मन करता है।
उसके साथ जीवन भर सुख दुःख में बिताने का मन करता है।
वो मेरा रहे, मुझे उसका हो जाने का मन करता है।
वो रूठ जाये तो, हर तरह से मना लेने का मन करता है।
लेकिन ऐसा क्यों होता है?
उसका जीवन भर इन्तजार करने का मन करता है।
वो किसी और का न हो जाये, अपना बनाने का मन करता है।
उसे पाने के लिये, दुनिया से लड़ जाने का मन करता है।
फिर उसका मौन देख, रुक जाने का मन करता है।
लेकिन ऐसा क्यों होता हैं?