ए मौत बुरा हो तेरा …
ए मौत ! बुरा हो तेरा ,
तूने घर कोई न छोड़ा ।
बच्चे ,बुरे या जवान ,
तूने किसी को न छोड़ा ।
कभी रोग कभी हादसा ,
कई बहानों से तीर छोड़ा ।
जिंदगी देती रही दुहाई,
उसकी सांसों को न छोड़ा ।
तू कब आई ,कब गई ,
कदमों का निशा तक न छोड़ा ।
उजले लिबास में छुपकर,
घरों में मातम का अंधेरा छोड़ा ।
और फिर अंत में तूने ,
यादों का स्याह धुंआ सा छोड़ा ।