8.ए बबुआ!
पढ़ि लिखि के तू का कइलऽजब रहि गइल लण्ठेश
ए बबुआ मेहरी खातिर माई के करेजा दिहलऽढेश
कइलऽना दिन याद उ बेटवा जब तोहरा के पोषलीं हो
सांवा कोदो बथुआ सरसो खियाई उपासे सोवली हो
माजि२ के बर्तन पालि कपूतन दर्जन मैं खाएउ सत्तू शेष
ए बबुआ! मेहरी खातिर माई के……….
कई बनिहारी मजूरी बेटवा तोहरा के शहर पढवली हो
बेचि गहनवां गाई बकरी बछिया कोरट से खेत बचवली हो
आज जबइ आंटइ लगले लालन आंगन बांटई लगले
नित बहुआ देत कलेश ए बबुआ मेहरी खातिर माई के…..
फाटल अंचरा फाटल चदरा फटल रजाई खोली हो
फाटल धोती फटल लंगोटी फटल बा माई चोली हो
कबो न फटलें माई के ममता बस बबुआ सपना फरलें शेष
ए बबुआ! मेहरी खातिर माई के करेजा दिहलऽढेश
जोरि२ लुगरी सी तामि के कथरी दिन खेते बितई दुपहरी में
चूल्हे न लकरी तेल न ढिबरी कस पाके खिचरी अन्हहरी में
जो लालों केगोदी बैठाई बारहिं बार मुख कवर खियाई
ऊ बेटा माई कवर गिनईं कण्ढेश ए बबुआ!मेहरी खातिर…
पं.आशीष अविरल चतुर्वेदी
प्रयागराज
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