ए तिवराईन बोल
छोड़ अब खिसियाईल कह, हँस हँस के बतीयईबु का।
ए तिवराईन बोल अबकी, तू करवाचौथ मनईबु का।।
तोहरा अईला से हमके, खट्ट मिठवा के स्वाद मिली,
तोहरो सातो सोमवारी के, हमरा सन प्रसाद मिली।
कह द अबके लगन में तुँहू, पंडिताईन बन जईबु का,
ए तिवराईन बोल अबकी, तू करवाचौथ मनईबु का।।
अपना बापे भईया बहिनी संग, दांत खिसोर बतियावे लू,
फिर काहे के हमरा आगे, तुँहू गुस्सा नाक चढ़ावे लू।
सुख दुख के संघतिया बन, संग झोपड़ी महल बसईबु का,
ए तिवराईन बोल अबकी, तू करवाचौथ मनईबु का।।
पहिले त जा तीर वेनी घाटे, तुँहू तिवराईन जन जईह,
फिर पंचभूत संग मिले खातिर, पंडिताईन बन जईह।
अब इहे बभने क छोटके, लल्ला के अम्मा कहईबु का,
ए तिवराईन बोल अबकी, तू करवाचौथ मनईबु का।।
तोहरे आसरा हमरे मन मे, सुन ल जबसे जागल बा,
गाँवे सगरी लोग कहे, मनसेधुवा घर से भागल बा।
मार के सबके मुँह पर ताला, हमके चाभी बनईबु का,
ए तिवराईन बोल अबकी, तू करवाचौथ मनईबु का।।
खाते बानी कमाते बानी, घूमी घूमी रौब जमाते बानी,
सगरे सुख सुविधा खातिर, सरकारी नौकरी पाते बानी।
गाड़ी बंगला के छल्ला खुबे, खोंस कमर मटकईबु का,
ए तिवराईन बोल अबकी, तू करवाचौथ मनईबु का।।
देख ढेर न हमहे खीस पराव, मन के आपन भेद बताव,
चाहे थाना कचहरी गाँव जुटाव, या चुपके महतारी मनाव।
अलता बिंदिया लाल चुनर, नामें “चिद्रूप” सिनुर लगईबु का,
ए तिवराईन बोल अबकी, तू करवाचौथ मनईबु का।।
साजी दुआरे बाजा बराती, या अपहरण कर्ता बन जाईं,
लेई आयी असहला दुई नलिया, बाद में चाहे सूली टंग जाईं।
बिन तोहरे जियल बा माहुर, कहँ हाँथें मेहंदी रचईबु का,
ए तिवराईन बोल अबकी, तू करवाचौथ मनईबु का।।
अब कहिया तक बोझे रहबू, आज न काल बियाहल जईबु,
मिलिहहिं जाने कईसन दूल्हा, पर हमरा सन नाही पईबु।
बानी हमहुँ बिरदरिये के, धर अँगुरी सँगे परयबु का,
ए तिवराईन बोल अबकी, तू करवाचौथ मनईबु का।।
छोड़ अब खिसियाईल हमसे, हँस हँस के बतीयईबु का।
ए तिवराईन बोल अबकी, तू करवाचौथ मनईबु का।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ११/१०/२००१)