ए जिंदगी तू कठपुतली सी
ए जिंदगी तू कठपुतली सी नचाती क्यो है
जिंदगी में प्यार दे नफरतें, फैलाती क्यो है
जब चाहती नहीं कि तू अरमां पूरे हो मेरे
तो सपनों को मेरे हमेशा तू सजाती क्यो हैं
सुना कि तू खूबसरत है मगर फ़िर भी यूँ
मरमर कर जिंदगी तू यहाँ जी जाती क्यों है
अशोक चाहता कि दर्पण देखें तू भी यार
मगर आईना मुझे सिर्फ़ तू दिखाती क्यो है
पता हमकों भी की तुझे जीना आसान नहीं
बेदर्द मगर दुःख पे सदा तू मुस्कुराती क्यो है
अशोक सपड़ा हमदर्द