ए चन्द्रमा….
ए चन्द्रमा तू रात को आता है
सुबह कहीं छुप जाता है
समय की चाल के साथ
तू भी चलता ही जाता है
ए चन्द्रमा रुक जा कहीं
ए समय तू भी थम जा कहीं
तुझे जी भर के निहार तो लूँ
बादलों की घनी ज़ुल्फ़ों में से
तेरा चेहरा सँवार तो लूँ
एक टक तुम को निहार तो लूँ
पर ना तो कमसिन समय थमता है
नाहीं कहीं चन्दा रुकता है
घटता-बड़ता बड़ता-घटता
नहीं रुकता नहीं थमता
पलक भर भी नहीं थमता
एक क्षण के लिए ही
पलक भर के लिए ही
गती शून्य समय के साथ
कैमरे में कहीं स्थिर सा कर लूँ
यादों में कहीं छुपा के रख लूँ
एक चित्र रूप बना के रख लूँ
ए चन्दा तुम्हें छुपा के रख लूँ
– राजेश्वर