ए- इंसान तेरे दिल में
ऐ- इंसान तेरे दिल में गुमान क्यूँ है।
हकीकत- ए- जहान से अनजान क्यूँ है।
नश्तर रहम भुला खुद रूह पर चलाए।
फिर क्यों मलाल दिल में अहजान क्यूँ है।
फूंके हुए हैं बुत अरमान खाक करके।
क्या देखता कि मैला आसमान क्यूँ है।
सादिक जो होगा तू मिलती वफा रहेगी।
मत सोच कि खुदगर्ज ये जहान क्यूँ है।
हर जिंदगी की तुझमें चिन्गारियाँ जलीं हैं।
फैला हुआ सा दिल में शमशान क्यूँ है।
क्यों सो रहा सुकूं जब दिन सा गुजर गया।
खामोश दिल में तेरे अब उफान क्यूँ है।
हद में सिमट ‘इषुप्रिय’ बेहद है आसमां।
फिर बाजुओं में भरने का अरमान क्यूं है।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ(म.प्र.)