एहसास
विसय एहसास
बिधा शायरी
दिनांक. 10: 4;2024
सात सुरो की सौगात बन,
सरगम की तुम एहसास हो
बकसे में रख बकवास किसी का खास बन,
झूठे प्रेम की तुम झूठी सी अरदास हो ।.
तडप-तडप कर तडपाकर तुफान बन ,
तरकश का छुटा तीर तीरंदाज हो ।
तान तीर तरकक्ष से तीन शेष रख
निशाना तुझ तीरंदाज इतना ना खास था।
काबिलियत तुझ में इतनी थी.
ओरो को छोड़ नील लगी नीलम का पुर्नवास हो।
आयी तुम में अरदास पागलपन की
बकवास को सुन सोयी प्रीत क्यों खास थी।
जमाना बीत गया तेरे ही संग को
खामोशी छायी तेरी ही आश थी
पागलपन की भांति पेन रख जेब में
खाली कागज पर बस तेरा ही इन्तजार था।
फुल हो तुम किसी डाळ का कांटा बन तनता रहा
किसी भौरे का रसपान तुझे क्यो ना बरदास था |
निकाल ज्वाला आंखों से कोप संग तन
उस नाजुक कली को भुलसता देख ना बरदास था।
माना कांटो का उस परी का नाता गहरा बना
नाजुक थी तेरे ख्यालो से बाहर भौरो का हा रसपान था।
माना तुने उसका ख्याल रखा, ख्यालो में मेरे वो आयी
बचता रहा मैं तेरी नजरो से आकर्षण की ज्वाला मुखी का
इस मन में उफान था।
बन सवर कर आती थी
पास रहकर बतलाती थी
दुर-चली गयी वो वो मुझसे,
खौफ आंखों में कांटो का बतलाती थी
झुलसी हूँ मैं आज उनसे.
खंजर उनके तीखे है।
प्रेम करू मैं आज तुमसे
रहना पड़ेगा उनके नीचे
भुल भुलैये का हूँ मैं साया
गलती हो गयी तुमे मैने पास बुलाया
. भारत कुमार सोलंकी
गंगापुर