एहसास…इन दिनों
हजारों सवालों के घेरे में रहती
मेरी जिंदगी अब अँधेरे में रहती
उलझी है रिश्तों के धागों जब से
सदा मुश्किलों के थपेरे में रहती,
नम आँखों से भी मुस्कुराती रही
मगर सच है सच को छुपाती रही
थी बेखबऱ अपने जख़्मे ज़िगर से
मैं औरों को मरहम लगाती रही,
बहारों के मौसम में भी पतझरों में
हुई कैद – सी मै तो ग़म के घरों में
ख्वाहिश उड़ानों की है हौसला भी
मगर आज उलझी हूँ अपने परों में,
जऱा उलझनों से निकल करके देखें
हैं मुश्किल ये राहें मगर चल के देंखे
औऱों की खातिर जली ज्योति हरदम
खुद के लिए भी तो जल कर के देखे