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9 Feb 2021 · 1 min read

एहसान फराहमोश न बन, इंसान बन

न बन इस कदर एहसान फराहमोश न बन
बक्शीं हैं बहुत सी नियामतें खुदा ने तुझे
न बन तू इस कदर खामोश न बन
नहीं मांगता वो तुझसे,
‘अपनी’ बंदगी की रहमत
बना रह तू बस इंसाँ ही
कर ले सिर्फ इतनी सी ही ज़हमत
चल पड़ा तू ग़रज़ में अपनी,
जिस नासाफ़ डगर पर है
ज़मीर का सौदा कर चुका,
न जाने फिर किस अकड़ में है
ज़ियारत (तीर्थयात्रा)की ज़रूरत नहीं
तस्सवूफ़ (सुफीपन)की ज़रूरत है
अज़ीम है ‘वो’ माफ़ कर रहा हमें
बस ये ही क़ज़ा(इश्वरीयदण्ड)उसकी फितरत में है।

©® मंजुल मनोचा ©®

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 222 Views
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