एहसान की जिंदगी
जमाना नहीं खराब खराब है यह दुनिया यह बात
लोगों को बताते हैं,
इंसा की इंसानियत मर गई यह अहम में अपने छुपाते
क्या सही क्या गलत गीता ज्ञान सबको बांटते हैं,
पर मजबूरी का फायदा उठाने में कभी न हिचकिचाते
मानवता के पूजारी हम यह दिखावा बहुत करते हैं,
आंच आए जब अंजा पर पहले दूर हम भागते हैं,
मर्यादा हममें बहुत है और रावण जैसा गुस्सा भी,
आंच आए जब अपनों पर तो बन जाते हैं काल भी,
कृष्णा नहीं तुम जो सारथी सबके बनते हो,
गर अभिमन्यु फंसा रण में तो चिंतित तुम क्यूं होते हो,
द्वापर नहीं कलयुग है यह इंसानियत रखो तुम जेब
यहां होता कोई किसी का नहीं सिखाया जाता हमें
बचपन में,
चूल्हा जलता गरीब के घर में यह हमारी ही मेहरबानी
है
,
खाना पकता जो हमारे घर में उसमे न उनकी कोई
निशानी है,
फर्क अमीरी गरीबी का बताया जाता हमें पहली ही
क्लास में,
उनके कितने उपकार हम पर ना बताया कभी पूरी
जिंदगी में,
किताबों में जो पढ़ाया हमें क्या वो सब फरेब था,
दिखा किसी को खुदा इंसानियत में यह महज़ एक
इत्तेफाक था।