एसिड अटैक का चेहरा
नारा लगाते जो आत्मनिर्भर का वो औरत को गुलाम समझते हैं,
अपने अहम के खातिर इनके अहम को चोट पहुंचाते हैं,
कहानी यह अहम की अक्सर अख़बारों में हमें दिखाई देती हैं,
जब एक लड़की की ना उसे जिंदगी भर का जख्म दे जाती हैं,
बात न मानकर एक लड़के की जब वो उसको ठुकराती है,
तब लड़के के अहम की चोट एसिड से लड़की का चेहरा जलाती है,
खूबसूरती बनती अभिमान जिस लड़की का उसके लिए ही पाप बन जाती हैं,
किसी के दो पल का सुकून एक लड़की से उसके जीने का गुरूर छीन लेती हैं,
चेहरा जलाकर एक लड़की का मर्दानगी पर जो इतराते है,
अक्सर उसी समाज में हम उन लोगों की दादागिरी पर कुछ न बोलते हैं,
शिकायत करते जब इस दंश का तो सवालों के घेरे में लड़की को लाते हैं,
जो दर्द सहा उसने उस वक़्त उस दर्द को फिर उसे याद दिलवाते है,
पाठ सीखते स्वाभिमान का जो उसी के खातिर कई बार दर्द सह जाते हैं,
पर अपने अहम को बचाने के लिए हम अपनी हर हद पार कर जाते हैं,
उसी हद के खातिर जब किसी काम की मना हम शांति से करते हैं,
लेकिन उस मना का जवाब अक्सर यह लोग हमें हमारा चेहरा जलाकर देते हैं,
सशक्त आत्मनिर्भर बनाते हर लड़की को ताकि इनका सामना वो कर पाए,
पर तेजाब न फेंके किसी मासूम के चेहरे पर वो सीख लड़को को देना भूल जाते हैं,
करता जब कोई अपनी बहन के साथ यह तो उसे मारने की हद तक पहुंच जाते हैं,
पर दूसरो की बहन के साथ यह सब करने में बिल्कुल न हिचकिचाते हैं,
भूल जाते हैं यह कि जो करते हम उसका असर वैसा ही होता है,
तभी तो हर तेजाब से ढके चेहरे के पीछे तुम्हारे अंत का चेहरा होता है।