#एक_और_बरसी…!
#एक_और_बरसी…!
■ ज़रा, याद करो कुर्बानी।।
★ साथ ही अकाल मौत भी।
[प्रणय प्रभात]
आज से ठीक 8 साल पहले वर्ष 2016 में आज ही के दिन 1000 और 500 रुपए के हरे-भरे, खस्ता-करारे नोट अनिच्छा-मृत्यु के शिकार हुए थे। आज उन बेचारों की आठवीं पुण्यतिथि है। तरस आता है 1000 रुपए के नोट पर, जिस निरीह का वंश ही समाप्त हो गया। निस्संतान जो मारा गया बेचारा। राहत की बात बस इतनी है कि 500 के नोट की नई पीढ़ी फिलहाल ज़िंदा है। जिसने अपने बाप (हज़ारी) के बाद अकस्मात प्रकट हुए दूर के दादा (दुई हज़ारी) को भी दम तोड़ते देखा है। कुछ ही दिनों पहले, अकाल मौत के अंदाज़ में। बहरहाल, तीनों प्रजाति के निरीहो को कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से भावपूरित श्रद्धांजलि। दुःख इस बात का है कि उनका जबरिया बलिदान व्यर्थ गया और कथित काला धन अब भी पहले की तरह गुप्त स्थानों पर मज़े कर रहा है।
तीसरी प्रजाति (2000) की भ्रूण-हत्या पर कोई तकलीफ़ नहीं, मगर बाक़ी दोनों की कुर्बानी भुलाए नहीं भूलती। वजह है उनकी मौत की वजह का साफ़ न होना। किससे करें शिकायत और किससे करें गिला…? मगर सच्चाई यही है कि दोनों के अकारण दिवंगत होने से किसी को कुछ भी नहीं मिला। न देश को, न देश वासियों को। कैश के खेल में ऐश तमामों के हुए, इतना ज़रूर पता है। जो तब काला था वो आज सफेद है। कल भी सफेद ही रहने वाला है। वैसे भी दोनों (काले-सफेद) में क्या भेद है…?? सवाल का जवाब तलाशने में वक़्त ज़ाया न करो। क्योंकि न आप “यक्ष” न जवाबदेह शासक “धर्मराज।” इसलिए धीरे से बोलो ऊं शांति, शांति, शांति।।
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■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)