एक ही राम
आब ए जम-जम पीकर देखा,
गंगाजल भी पान किया।
उसका रूप मिला जैसा भी,
जी भर के गुणगान किया।
वाहेगुरु,रब,राम,यहोवा,
सबका एक सा काम मिला।
अंदर झाँका एक नूर था,
उसका एक ही नाम मिला।
अगर तमन्ना पाना उसको,
मज़हब के चश्में को फेंको।
बंद नज़र के अंदर झांको,
रब के अजब करिश्में देखो।
बुल्ला,रूम,बाहु सुल्ताना,
थे क़ामिल दरवेश।
अंदर सज़दा किया प्यार से,
देखा रब का देश।
वही एक हैं हर जर्रे में,
दूजा और न पाया।
जिसने एक झलक भी देखा,
अंदर सहज छिपाया।
रब ने तो इंसान बनाया,
इंसा धर्म बना कर बैठा।
अपनी डफली,राग है अपना,
एक दूजे से दिखता ऐंठा।
जितने क़ामिल मुरशिद आये,
सबने इक उपदेश दिया।
यही कहा वह सांझा सबका,
तेरा मेरा नहीं किया।
सृजन भी बड़भागी खुद में,
मिल गया मुरशिद पूरा।
अंदर चानन पाया रचके,
हो कर पग का धूरा।