एक ही तारनहारा
मंदिर,मस्ज़िद या गिरजाघर,
या गुर का गुरुद्वारा।
वही एक रब सब नीं थाई।
एक ही तारनहारा।
केवल मन में बहम भरा है,
लगता तेरा मेरा।
मानव बांट लिया उस प्रभु को,
दीवारों में घेरा।
सुनो सनातन,सिख,ईसाई,
सुन मोमिन गल न्यारी।
इतना सस्ता नहीं राम है,
कीमत है अति भारी।
नारा दिया ‘अनल हक़’ का जब,
सुलि चढ़े मंसूर।
ईशा ने भी फांसी पाया,
जबकि नहीं क़सूर।
गर रब पाना बन जा बुल्ला,
कंजरी बन कर नांच।
या फिर बन मीरा विष पीकर,
अपने हरि को जांच।
पनही हरि को खुद पहनाऊं,
मन में लेता ठान।
यूं नहीं बना ‘रसखाना’
इब्राहीम पठान।
अगर ,सत्य की खोज,की चाहत,
ढूढों मुरशिद पूरा।
खिदमत करो करार किये बिन,
बन जा पग की धूरा।
तेरा मेरा छोड़ जेहन से,
गर पाना ला-फ़ानी।
खुदी मिटाकर खोजो भीतर,
कर खुद की कुर्बानी।
एक राम है सबका सांझा,
उसी का सकल पसारा।
वही एक रब सब नीं थाई,
एक ही तारनहारा।