*एक साथी क्या गया, जैसे जमाना सब गया (हिंदी गजल/ गीतिका)*
एक साथी क्या गया, जैसे जमाना सब गया (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
साथ जगना-साथ सोना, मुस्कुराना सब गया
एक साथी क्या गया, जैसे जमाना सब गया
2
काटने को दौड़ते हैं, मूक घर के द्वार सब
जब गए तुम ज्यों भरा, घर में खजाना सब गया
3
वक्त के मारे हों, ऐसी शक्ल अब बन ही गई
साथी गया तो ओढ़ना, ज्यों बिछाना सब गया
4
गुमसुमी है अब तुम्हारी याद में आठों पहर
अब किसी के घर कहीं पर, आना-जाना सब गया
5
आया नहीं कोई अतिथि, एक अरसा हो गया
आ गया भी तो उसे, खाना खिलाना सब गया
6
जब से गए हो बेसुधी, एक चारों ओर है
दोपहर-दिन-रात, मोबाइल चलाना सब गया
7
कुछ नहीं लगता हमें, अच्छा तुम्हारे अब बिना
रोज का दाढ़ी बनाना, या नहाना सब गया
8
एक के जाने से ही, संसार अब कब शेष है
वह हॅंसी-ठठ्ठे लगाना, खिलखिलाना सब गया
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451