एक सभ्यता ऐसी
एक सभ्यता ऐसी जिससे प्रेरित होता विश्व सकल,
एक सभ्यता ऐसी जो है अजर, अमर, अतुलित व अटल।
एक सभ्यता ऐसी जो जन जंगल जीवन साथ रखे,
एक सभ्यता ऐसी जैसे हो निर्मल गङ्गा का जल। (१)
एक सभ्यता ऐसी जिसने कभी ना पहला वार किया,
एक सभ्यता ऐसी जिसने शत्रु से भी प्यार किया।
एक सभ्यता ऐसी जिसने मिट-मिट कर उत्थान किया,
एक सभ्यता ऐसी जिसके धर्म-परायण लोग सकल। (२)
गौरव मेरा, मेरा भारत, मेरी जन्मदात्री धरती,
विश्वगुरु, विश्वमार्गदर्षक, विश्वविदित दैवीय शक्ति।
गुण अगणित विद्यमान इसमें इक मुख से क्या गान करूँ!
मेरा भारत श्रेष्ठ है सबमें, जैसे नभ में चंद्र धवल। (३)
ज्ञान, रसायन, वेद, रामायण, अङ्कगणित या शल्यक्रिया,
सामगान, नर्तन, वादन संगीत हो या हो युद्धविद्या।
हर सोपान पे खरा प्रदर्शन गुरु शिष्य परम्परा से,
क्या बतलाऊँ किस किस क्षेत्र में क्या कुछ इसने नहीं किया। (४)
प्रखर, प्रबल, कुशाग्र बुद्धि वाले सब भारतवासी हैं,
लक्ष्मी यहां खेत में बसती, सरस्वती घरदासी है।
सीधे सच्चे अंतर्मन वाले सब मेरे भाई बहन,
आओ मिलकर झुककर हम इस वसुंधरा को करें नमन। (५)
मुझको जब भी जन्म मिलेगा तब इस पर ही आऊंगा,
धरती से जुड़कर रहकर अम्बर को छूना चाहूंगा।
जिस धरती पे स्वयं ब्रह्म आने को आतुर रहता है,
*’शैल’*सम्भवा उस धरती से मोक्ष मार्ग को पाऊंगा। (६)