“एक शिकायत तुझसे”
तेरे दर पर मेरा यूं, बार-बार भटकना
हैरत में डालता है मुझे,
जिस पर हो तेरा हाथ, वह अनोखा है
फिर कैसा ?उसका बार-बार भटकना ,
क्या तू भी उन नेताओं की तरह है ?
जो बार-बार देखना चाहते मेरा भटकना,
तेरे और नेताओं के दर में यही समानता ,
यही देख अंदर से टूट जाती हूं मैं ,
जो तेरा है ,उसका, भला कैसा भटकना?
दर्द नहीं देता है, मेरा काम करना
दर्द देता है, मुझे दर्द में देखकर ,तेरा चुप रहना ।
तेरे दर आते हैं, शांति की तलाश में,
लेकिन उस तलाश में, जारी है मेरा भटकना।
हम तो इंसान हैं, तेरे दर की चाहत है ,
पर पसंद है तुझे, नेता जैसा तारीख पर तारीख देना।
मेरे अंदर तेरे लिए श्रद्धा है, एक चाहत है ,
इस चाहत को तूने क्यूं बना दिया मेरा भटकना।
कहते हैं, नियम विरुद्ध सब होता है, फिर क्यूं?
मेरे सामने नियम की दीवार खड़ी की जाती है,
तू तो चमत्कारी है ,कुछ भी कर सकता है, फिर क्यूं
पसंद है तुझे ,मेरा भटकना।
हम क्यूं अन्दर की वेदना, तेरे दर ले जाते ,
हमारे आंसू, तेरे लिए तो ,कुछ भी नहीं,
तू हमारे लिए सब कुछ है, और तू!
नेता की तरह ,देखना चाहता है, हमारा भटकना
बस यही बात मेरे दिल को ,टुकड़े-टुकड़े करती है,
एक तू सहारा है ,कैसे ?देख सकता है तू मेरा भटकना।