एक शाश्वत मौत..
फिर वही झील में कंकड़ उछाल कर तेरा जाना।
और मैं सिहरती रहती हूँ देर तक
उन्हीं कँपकपाती लहरों की तरह।
जो छपाक् से फेंके कंकड़से
झनझनाती रहती हैं देर तक।
उछल कर पल भर को उन्मुक्त
होती रहती हैं आलोड़ित।
और फिर कुछ देर बाद सब
सब शांत ।
बचता है सिर्फ अहसास
जो देर तक मौन सन्नाटे में,
चीखता रहता है देर तक।।
पाखी