एक शायर का दिल …
एक शायर का दिल क्या चाहता है ?
बस सुकून के दो पल और कुछ नही ।
वोह पल ऐसे हो जिसमें हो तन्हाई,
एक उसके सिवा पास कोई नहीं।
एक पल जिसमें करे खुद से बातें ,
हर सू खामोशी ,आवाज कोई नही ।
ऐसे में साथ हो केवल कलम का ,
और खलल कोई उसे गवारा नहीं ।
लाखों रंग के यह इंसानी जज़्बात ,
तस्वीर बनकर उभरे जब तक नही ।
उस शायर को मिलेगा करार कहां !,
जब तक मिलेगा लफ्जों का साथ नहीं।
मिले बेहतरीन लफ्ज़ तो कुछ बात बने,
बिना सही तुकबंदी के मजा आयेगा नही ।
शायरी वोह जो किसी के दिल को छुए,
मगर इस जहां में तो दिलवाला ही नही ।
फुर्सत नही किसी को पास बैठने की भी ,
वोह गौर क्या करेगा जब सुनेगा नही ।
अलबत्ता उसे झूठी तारीफ नापसंद है ,
मगर सच्ची तारीफ यहां होती ही नहीं ।
जाने कितने अरमान शायर के दिल में,
मगर मुकम्मल होते एक भी नही ।
एक शायर का दिल क्या चाहता है ?
गनीमत है खुदा ही सुन ले या नही !
यह जहां है पत्थर दिलों का “ए अनु”,
एक शायर दिल की यहां कद्र ही नही ।