एक शाम
शीर्षक-एक शाम
जरा सा रो दिए थे
बैठ कर शाम
खिड़की के पास
दिनभर के ख़्वाब को
ढलते हुए
चाय के प्याले को लेकर
भूल गए
बस कुछ भूला याद करते हुए
डूबते हुए सूरज को
दिन को लेने वाला आगोश में
साथ पाकर साँझ का
छोड़ के चल दिया अकेले
बदल जाता है सबकुछ
समय के साथ
देख के ऐसे दुनिया के खेल
हाँ
जरा सा रो दिए थे हम।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )