एक शब्द प्रेम का
“एक शब्द प्रेम का”
कल्पना करो कि प्रेम ना होता
तो कैसा होता पृथ्वी पर जीवन?
विचार करो कि प्रेम का भाव ना होता
तो क्या इतना मूल्यवान होता जीवन?
प्रेम को बस एक शब्द ना समझो
प्रेम में समाया है सारा संसार
जो प्रेम का अर्थ जान गया
वो समझ गया जीवन का सार
जो हृदय से करोगे प्रेम
हर जगह पाओगे प्रेम
ध्यान से देखो कहाँं नही है प्रेम
जरा सा प्रेममय होकर अनुभव करो
सृष्टि के कण-कण में है प्रेम,
माँ की ममता,करूणा
पिता के वात्सल्य में है प्रेम
भाई-बहिन के स्नेह में है प्रेम
मित्रता के भाव में है प्रेम
सारे सम्बंधों में निहित है प्रेम
नि:स्वार्थ सेवा में है प्रेम
निर्बल की रक्षा में है प्रेम
पशु-पक्षियों से लगाव में है प्रेम,
ईश्वर की कृपा में है प्रेम
भक्त की भक्ति में है प्रेम
साधक की साधना में है प्रेम
शिष्य के शिष्टाचार में है प्रेम
गुरू के आशीर्वाद में है प्रेम
दया की भावना में है प्रेम,
वृक्ष की शीतल छाया में है प्रेम
निर्बाध बहती वायु में है प्रेम
वर्षा की बूंदों में है प्रेम
धरा की हरियाली में है प्रेम
सागर की लहरों में है प्रेम
पुष्प की सुन्दरता में है प्रेम
सूर्य के प्रकाश में है प्रेम
चन्द्रमा की किरणों में है प्रेम
प्रकृति की खुशहाली में है प्रेम,
सच है कि
हर जगह है प्रेम
हर अभिव्यक्ति
हर व्याख्या में है प्रेम
मनुष्य को सृष्टि से जोड़ता है प्रेम
जीवन को जीवंत बनाता है प्रेम
पृथ्वी पर जीवन के लिये पर्याप्त है
केवल प्रेम
केवल प्रेम
जीवन सार्थक हुआ उसी का
जिसने समझा अर्थ प्रेम का
उसने हृदय सबका जीत लिया
जिसने हृदय से बोला एक शब्द प्रेम का
सौरभ चौधरी
झालु,जिला बिजनौर,उत्तरप्रदेश