एक वीरांगना का अन्त !
====”एक वीरांगना का अन्त!”====
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भारत को आ घेरा था वो महाकाल।
इन्दिरा पर चली थी एक गहरी चाल।।
इकतीस अक्टूबर चौरासी को प्रात:काल।
इस वीरांगना का हो गया अन्तकाल।।
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वे रक्षक थे-जो बन बैठे, इन्दिरा का काल।
वे पराये नहीं थे, थे भारत-माॅं के लाल।।
उन निर्दयों ने, उसका भी किया अन्तकाल।
जो बन बैठा था- एक वीरता की ढ़ाल।।
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इन्दिरा एक माॅं थी सम्पूर्ण भारत की।
थी एक ममता की ज्योत भारत की।।
क्यों अपनी ही माॅं की हत्या कर दी ?
क्यों ममता की ज्योत बुझा दी भारत की ??
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एक माॅं की हत्या का आग-सा फैला समाचार।
फिर क्या था- चारों तरफ मचा हाहाकार।।
जिधर भी देखा- छाया अंधकार ही अंधकार।
इन्दिरा के शोक में डूबा सारा संसार।।
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जन-जन में प्रतिशोध की ज्वाला धधक आई।
एक माॅं की निर्मम हत्या से ऐसी आंधी आई।।
कि सम्पूर्ण भारत में- फिर मची त्राहि-त्राहि।
और मारे गये आपस में- थे जो भाई-भाई।।
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जिधर भी देखा- जनता ने खेली खून की होली।
किसी पर तलवार चली, चली किसी पर गोली।।
कहीं आग जली, कहीं वे काया जिन्दा जली।
तो कहीं खेंची गई थी, किसी की चोली।।
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भारत की ये दशा देख- रोया था महाकाल।
टूटा था, भारत की एकता-अखंडता का जाल।
इन्दिरा की हत्या से हुआ भारत पुरा बे-हाल।
अब! न जाने कैसा होगा, भारत का भविष्यकाल ?
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जन-जन की याचना भी, न की ईश्वर ने स्वीकार।
आखिर करना ही पड़ा, इन्दिरा का अंतिम संस्कार।।
जलती चिता देख, रो पड़ा फिर सारा संसार।
एक महान् नारी का था, जो यह अंतिम संस्कार।।
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देश के खातिर- इन्दिरा ने दिया प्राण-बलिदान।
इस वीर नीतिज्ञा ने किया- सबका कल्याण।।
आओं ! हम भी करें सम्पूर्ण भारत का कल्याण।
और करें हम! अशेष मानवता का कल्याण।।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल(उज्जैन)*मध्यप्रदेश*
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