एक वही मलाल,एक वही सवाल..
एक वही मलाल,एक वही सवाल….
जाते जाते भी अलविदा ना कह पाने का मलाल..
अंदर ही अंदर चुप करके बैठे हैं! ना समझ सके लोग ,ना समझा सके अपना हाल…
बीते है महज कुछ दिन, अभी बीतेगे ना जाने कितने साल…
पूछ तो लेगे तुमसे पर ! कह ना सकेगे अपना हाल…
वक़्त ने किया कुछ या किस्मत का रहा अपनी कमाल….
टूटे भी , और बिछड़े भी, ऎसा था गिरा जाल..
एक ही मलाल,एक ही सवाल…
क्यों बदली इस तरह हमारी लकीरों ने चाल…
फिर फेक दिया आग में और कर दिया बद्दहाल ….
अब तो मांग का सिंदूर भी लगता है जैसे खून का रंग लाल…
जचता बहुत हम पर सुर्ख इश्क़ का रंग गुलाल….
एक ही मलाल, एक ही सवाल….