Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Dec 2021 · 2 min read

एक लड़की ….

हाँ ! मैं लड़की हूँ ,

तो क्या लड़की होना गुनाह है ,।

ऐसा तुम सोचते हो ,

तुम्हारा क्या!

तुम तो दोगले हो ।

सदा से रहा है तुम्हारी ,

कथनी और करनी में फर्क ।

तुम दर्शाते हो मेरे लिए नफरत ।

करते हो मेरी उपेक्षा और अपमान,

तभी तो रोकते हो मुझे तुम,

जन्म लेने से ।

मैं तो अभिशाप हूँ जैसे तुम्हारे लिये.।

और जो नवरात्रों में देवी पूजा करते हो। व्रत रखते हो .।

छोटी -छोटी कन्याओं को

बुलाकर खीर पूरी खिलाना ,

तोहफे देना ,

क्या है यह ?

बस ! कुछ दिन की आव-भगत !

उसके बाद…

वोह माता भी तो लड़की ही है .

उनके लिए तो भक्ति -भाव और

और लड़की के लिए नफरत .

क्यों?

तुम मुझे बोझ समझते हो .

घर की चार -दिवारी में बंद कर ,

सामाजिक मर्यादा का वास्ता देकर ,

आजीवन कारावास दे देते हो .

क्यों ?

मुझे ही क्यों ?

भाई को क्यों नहीं .

क्यों की वोह लड़का है ,इसीलिए!

यह कैसा पक्षपात है ?

दुर्गा माता के गुणों का तो बखान .

और मेरे लिए अबला होने फरमान .

क्यों ?

हाँ मैं लड़की ज़रूर हूँ

मगर मुझे भी जीने का अधिकार है.

मैं क्या पहनूं

और क्या ना पहनूं ,

मुझे कहाँ जाना है ,

कहाँ नहीं ,

क्या करना है ,

क्या नहीं .

मुझे सोचने दो .

मुझे मेरे सपने देखने दो .

मुझे सपने देखने का पूरा अधिकार है.

मेरे पैरों में बेडियाँ मत डालो .

मगर !

मगर तुम कहाँ मानते हो .

मैं सिर्फ एक लड़की हूँ ,

इंसान नहीं .

हर क़दम यह एहसास करवाते हो।

मैं लड़की हूँ तो क्या सार्वजानिक संपत्ति हूँ!

भोग्या हूँ !

। नहीं !

मगर तुम्हारी तंगदिली , कुत्सित दिमाग ने ,

मुझे सदा गलत आंका .

तार -तार कर मेरी अस्मत के दामन को ,

मुझे भरे चोराहे पर फेंका .

तुम तो हो गए हो बिलकुल ,

निरंकुश ,खूंखार दरिन्दे की तरह .

जो आमदा रहता है सदा किसी भी

खिली -अधखिली ,मासूम कली को

नोचने , खसोटने ,रोंदने ,और फिर तोड़कर
फाड़कर फेंकने में ।

तुम्हारे अंदर का इंसान मर गया है शायद .

काश !

काश ! तुमने एक बार तो सोचा होता !

मुझे मात्र शरीर के बजाये

एक इंसान समझा होता .

मेरे वस्त्रों तो टटोलने के बजाये मेरा ह्रदय टटोला होता.

मुझमे है आत्मा .

मुझमें है संस्कार ,सभ्यता , और महान मानवीय गुणों का भंडार .

मैं हूँ एक विचार .

मैं मात्र लड़की नहीं ,

मैं एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व हूँ .

मैं ही हूँ वही महान विभूतियाँ .

जिन्होंने देश -दुनिया ,की सभ्यताओं को बदला .

मुझे धारण करते गर तुम पुरुष!

तो पूरण पुरुष बन गए होते .

मगर तुम तो रहे निरे पशु के पशु ही .

मुझे बस शरीर माना .

नहीं देखा तुमने मेरे चेहरे को .

इन आँखों को ,

और उनमें छुपे सूनेपन को .

देखते गर तो तुम्हारा ज़मीर
चीत्कार कर उठता .

तुम्हारे भीतर भी ज़रूर कुछ टुटा होता .

मगर नहीं !

असल में तुम ही बस शरीर हो .

तभी तुम दरिन्दे हो .

तुम इंसान रहे कहाँ !

मगर मैं एक इंसान हूँ .

मुझे फिर भी खुद पर नाज़ है .

हाँ! मैं लड़की हूँ !

नोट – एक लड़की का रोष सम्पूर्ण पुरुष समाज से

Language: Hindi
3 Likes · 9 Comments · 293 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from ओनिका सेतिया 'अनु '
View all
You may also like:
दुकान मे बैठने का मज़ा
दुकान मे बैठने का मज़ा
Vansh Agarwal
सत्य की जय
सत्य की जय
surenderpal vaidya
तौबा ! कैसा यह रिवाज
तौबा ! कैसा यह रिवाज
ओनिका सेतिया 'अनु '
ਯਾਦਾਂ ਤੇ ਧੁਖਦੀਆਂ ਨੇ
ਯਾਦਾਂ ਤੇ ਧੁਖਦੀਆਂ ਨੇ
Surinder blackpen
मुर्शिद क़दम-क़दम पर नये लोग मुन्तज़िर हैं हमारे मग़र,
मुर्शिद क़दम-क़दम पर नये लोग मुन्तज़िर हैं हमारे मग़र,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
#प्रसंगवश-
#प्रसंगवश-
*प्रणय प्रभात*
रामायण  के  राम  का , पूर्ण हुआ बनवास ।
रामायण के राम का , पूर्ण हुआ बनवास ।
sushil sarna
# खरी बात
# खरी बात
DrLakshman Jha Parimal
अधूरी दास्तान
अधूरी दास्तान
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
प्रेम शाश्वत है
प्रेम शाश्वत है
Harminder Kaur
विकट संयोग
विकट संयोग
Dr.Priya Soni Khare
आब-ओ-हवा
आब-ओ-हवा
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
!! पुलिस अर्थात रक्षक !!
!! पुलिस अर्थात रक्षक !!
Akash Yadav
चाँद
चाँद
TARAN VERMA
#कुछ खामियां
#कुछ खामियां
Amulyaa Ratan
जन-जन के आदर्श तुम, दशरथ नंदन ज्येष्ठ।
जन-जन के आदर्श तुम, दशरथ नंदन ज्येष्ठ।
डॉ.सीमा अग्रवाल
यादों की किताब बंद करना कठिन है;
यादों की किताब बंद करना कठिन है;
Dr. Upasana Pandey
देव दीपावली
देव दीपावली
Vedha Singh
दोहे
दोहे
Suryakant Dwivedi
ये दुनिया गोल है
ये दुनिया गोल है
Megha saroj
एकांत में रहता हूँ बेशक
एकांत में रहता हूँ बेशक
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
नहीं आती कुछ भी समझ में तेरी कहानी जिंदगी
नहीं आती कुछ भी समझ में तेरी कहानी जिंदगी
gurudeenverma198
*******खुशी*********
*******खुशी*********
Dr. Vaishali Verma
कौन कहता है कि नदी सागर में
कौन कहता है कि नदी सागर में
Anil Mishra Prahari
U888
U888
u888tube
माँ
माँ
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
ग़ज़ल
ग़ज़ल
प्रदीप माहिर
ज़िदादिली
ज़िदादिली
Shyam Sundar Subramanian
*ईख (बाल कविता)*
*ईख (बाल कविता)*
Ravi Prakash
मेरे दो बेटे हैं
मेरे दो बेटे हैं
Santosh Shrivastava
Loading...