एक लघु प्रेम कथा
एक बार मेरे मित्र के कोई परिचित एक सुंदर पर्शियन बिल्ली का बच्चा काफी तारीफ़ों एवम किफ़ायती दामों पर मुझे बेंच गए । हम लोगों ने पालतू पशुओं के प्रति अपने प्रेम के चलते उनसे वह तीन हफ्ते की उम्र वाली बिल्ली को ले कर पाल लिया । घर के अंदर स्वागत में उसके लिए सारे इंतजाम किए गए । शुरू में एक जूते के डिब्बे में छोटा तौलिया बिछा कर उसका घर बनाया और एक प्लास्टिक के टब में कुछ रेत बिछा दिया गया जिस पर जाकर अपनी आदत के अनुसार वह निवृत्त हो सके । आनन फानन में उसके लिए उसकी पसंद का पेडिगेरी वाला मछली से निर्मित दानेदार बिल्लियों के लिए विशेष तौर पर निर्मित भोज्य और दूध आदि का इन्तज़ाम किया गया । आने के कुछ ही घण्टों में ही वह घर के सभी सदस्यों के आकर्षण , व्यस्तता एवम प्यार का केंद्र बन गयी । घर में पले कुत्ते भी उसके पास आ कर उसे सूंघ कर अपनी दुम हिला कर उससे मित्रता की स्वीकारोक्ति जता गये ।
सबका प्यार और अच्छी देखभाल पा कर वह धीरे धीरे बड़ी होने लगी । अधिकतर वह घर के सदस्यों की गोदी में और शेष समय मेरे घर के कमरों में इधर उधर घूम कर बिताने लगी । कुछ दिनों बाद उसके लिये एक मुलायम बिस्तर का खटोला बिछा दिया गया जिस पर वह कम रहती थी अलबत्ता उसे साफ सुथरे सोफों , गद्दियों ,घर के बिस्तरों आदि पर कुछ इस कोण से बैठना पसन्द था जिससे वह खुद छुपी रह कर सब पर नज़र रखती थी । कभी – कभी उसकी इस प्रवत्ति के कारण घर में उसे ढूंढना कठिन हो जाता था । वह अपने को चाट चाट कर इतना साफ सुथरा रखती थी कि किसी को उसके इस व्यवहार से कोई आपत्ति नहीं थी । धीरे – धीरे वह घर के सदस्यों के लाड़ प्यार और उचित देखभाल पा कर वह शिशु से शैशवकाल पार करती कुछ ही महीनों में एक सुंदर युवा , घमंडी , शांतिप्रिय , शर्मीली पर्शियन बिल्ली के रूप में विकसित हो गयी । घर मे पले कुत्तों की भांति सबके आगे पीछे दुम हिलाते हुए घूमना उसे पसंद नही था , पर किसी की गोद में गौरवान्वित हो बैठ कर प्यार से अपने फ़र को देर तक सहलवाना उसे खूब भाता था । कभी वह बहुत फुर्तीली हो कर बिना आहट किये इधर से उधर कुलांचें मारती , तो कभी शांत बैठ कर अपनी गरदन और आंखे घुमा कर चैतनन्यता से आस पास नज़र रखती , तो कभी महा आलसी बन कर निष्चल , शिथिल पड़ी दिखाई देती मानों मर गयी हो । जिस भांति किसी एक्वेरियम मे तैरती मछलियों की गतिविधियों को घण्टों निहारा जा सकता है उसी प्रकार उस खूबसूरत , शर्मीली , रेशमी , मुलायम फ़र और नीली आंखों वाली बिल्ली की हरकतों को तनाव मुक्त हो कर घण्टों निहारते हुए मन की चेतना को उस पर एकाग्र कर ध्यानस्थित किया जा सकता था ।
ऐसा लगता था कि वह अब घर के सदस्यों को भी पहचानने और उन्हें प्यार करने लगी है ।धीरे धीरे उसके घूमने का दायरा उसकी उम्र के साथ-साथ बढ़ता जा रहा था कभी कहीं कोई गली का कुत्ता उस पर आक्रमण ना कर दे या कोई उसे चुरा कर न लेजाये इसलिए घर के मुख्य दरवाजे और रास्ते उसके लिए बंद कर दिए गए थे । फिर भी अक्सर लोग बताते थे कि अब कभी कभी वह बाहर लॉन की क्यारियों में तो कभी बाहर की गैलरी में घूमती पाई गई थी । उसके इस आवारापन को देखते हुए आंगन में और इधर उधर उसके बाहर निकल सकने वाले रास्तों जैसे पानी के निकास की मोरियों आदि पर भी जाली बांध कर उसके घर से बाहर निकलने के सारे रास्ते बंद कर दिये गये । अब लगभग पूरे समय वह घर के अंदर ही रहती थी ।
उन्हीं दिनों मुझे अपने मोहल्ले का एक आवारा , लफ़ंगा , काली सफेद धारियों वाला जंगली बिल्ला मेरे आवास के चारों ओर मंडराता हुआ दिखाई पड़ा , फिर कुछ दिनों बाद मैंने देखा कि वह मेरे घर की चहारदीवारी के पास लगे एक ऊंचे पुराने फ़िशपाम के पेड़ जिस पर एक पुरानी फूलों की बेल आच्छादित थी की छाया में वह बिल्ला अक्सर आ कर बैठा रहता था । जब वह बिल्ला वहां नहीं होता था तो उस जगह की बेल के दबे पत्तों एवम मुड़ी हुई टहनियों के द्वारा बनी जगह को देख कर लगता था कि शायद वो घण्टों वहीं बैठे बैठे घर आंगन में घूमती बिल्ली की झलक और गन्ध पा लेता हो गा ।
एक दिन देर शाम मैं किसी कार्यवश अपने घर की सीढ़ियां उतर रहा था तभी मैंने देखा कि वह बिल्ली भी मेरे साथ चुपचाप दबे पांव उतर रही है , फिर थोड़ी देर बाद आधी सीढ़ियां उतर जाने के बाद मेरी नज़र कुछ दूरी पर शांत दुबक कर बैठे उस बिल्ले पर पड़ी उसे देखकर मैं माज़रा समझ गया । उस समय अगर मैं चाहता तो पैर की एक थाप से उस बिल्ली को डरा कर उसको घर के अंदर वापस भेज सकता था या उसे उस समय कमरे में बंद कर देता या फिर चाहता तो उसके लिये एक पिंजरा बनवाकर उसमे बन्द कर के उसे पाल सकता था , पर जिससे प्यार हो जाये उसे आप क्षति नही पहुंचा सकते , जो फूल पसन्द है उसे डाली से अलग नहीं कर सकते । मुझे लगा वो उन्मुक्त्त बिल्ली मेरे से बंधनमुक्त हो मेरे घर के द्वारा उसको प्रदत्त सारे भौतिक सुख सुविधाओं को त्याग , बिना किसी ऊंच नीच की परवाह किये उस आवारा , लफंगे मगर अपनी पसंद के राजकुमार बिल्ले के साथ नया जीवन बिताने जा रही है । उसे पुनः बन्धनयुक्त कर मैं उसके प्रति अपने लगाव को गिरना नहीं चाहता था । अतः इस क्षणिक सोच के साथ मैंने उस बिल्ली को अपने बराबर से निकल कर आगे सीढ़ियां उतर जाने दिया और फिर बिल्ली तेजी से मेरे सामने सीढ़ियां और लॉन पार करती हुई सीधी बिल्ले की दिशा में दबे पांव त्वरित गति से चली गई और मैं अपने कार्य की दिशा में मुड़ गया । कार्य समाप्ति के उपरांत मेरे मन में यह आशंका थी कि शायद वह बिल्ली अब लौट कर ना आए फिर भी ऊपर आते समय मैंने घर के अंदर जीने का दरवाजा उसके लिये खुला छोड़ दिया । जीने का दरवाज़ा खुला होने के बावजूद करीब 2 – 3 घंटे तक जब बिल्ली वापिस वापस नहीं आई तो आधी रात को उठ कर मैंने दरवाज़ा बन्द कर लिया । फिर अगले दिन सुबह – सुबह वो बिल्ली सब जगह तलाशने पर भी घर में नहीं मिली , इसी तरह दो दिन फिर दो माह से अधिक बीतने के बाद भी बिल्ली नहीं लौटी । इस बीच उसके घर के अंदर आ सकने के रास्ते खोल दिये गये , पानी के निकास की मोरियों पर से जाली हटा दी गई थी। कभी कभी मैं उसके बैठने वाले स्थानों , मोरियों और घर की चाहर दीवारी पर उस फिश पाम के पेड़ वाली जगह पर उसका पसंदीदा मछली के दानों वाला आहार बिखरा कर आ जाता था पर जिसे खाने फिर कभी कोई नहीं आया ।
उसके जाने के बाद से सबके मन उदास हो गये । किसी को लगा वो बिल्ली खो गई , किसी का ख्याल था चोरी हो गयी, किसी का विचार था वो बेवफा और मूर्ख थी जो इतना लाड़ प्यार त्याग कर चली गई । पर उसके इस मेरे गृह से पलायन के गुप्त रहस्य को केवल मैं ही जानता था जिसे मैंने कभी किसी से साझा नहीं किया कि मैंने ही अपने मन में उस दिन किसी प्रसिद्ध फ़िल्म के आशीर्वचनों के बोलों को याद करते हुए उसे जाने दिया था —
‘ जा सिमरन तू जी ले अपनी ज़िन्दगी ‘।