एक रोज़ सारी कविताएँ पूरी हो जायेंगी
एक रोज़ वे जर्जर कविताएँ भी अर्थ देने लगेंगी,
जिनका आशय शायद ही कोई समझ पाया हो ।
टूटे-फूटे शब्दों वाली पङ्क्तियाँ भी पूरी हो जायेंगी,
जिन्हें पिरोते वक्त व्याकुलता में छोड़ा गया हो ।
उन अधूरी पङ्क्तियों को भी सुरों में बुना जायेगा,
जिन्हें किसी कोने में भविष्य के लिए सहेजा गया हो।
एक दिन खिलखिलाती-मुस्काती जाएँगी पङ्क्तियाँ
मानो विरही पङ्क्तियों से अवसाद निचोड़ा गया हो।
एक रोज़ सारी अधूरी कविताएँ पूरी हो जायेंगी,
जिन्हें अकेले में सपनों की तरह पिरोया गया हो ।
दीखती हैं ऐसे अरसे पहले आहुति दे चुकी पङ्क्तियाँ
मानो उन्हें जीवन के वरमाल से सजाया गया हो ।
उस रोज़ ये पङ्क्तियाँ भी पूरी कविता बन जायेंगी
जिस रोज़ सारे ढकोसलों को झुठलाया गया हो ।