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9 Jul 2021 · 5 min read

एक रुपये के चार हिस्से

कार्तिक का माह था और ठंड युवावस्था को प्राप्त कर चुकी थी शाम के 5 ही बजे होंगे मैं कनपुरिया जैकेट पहने कानों में ईयरफोन लगाए अपनी दोस्त से बातें कर रहा था उधर सूर्य अपने घर की और बढ़ चला था,अस्त होते सूर्य की रक्त लालीमा मुझे बड़ी नयनरम्य लगती थी ।
जहाँ मैं बैठा था ठीक बगल की कुर्सी पर ही एक लगभग 45 बरस के व्यक्ति का आकर बैठना हुआ जो अपने हाथों में कोई साहित्यिक किताब लेकर बैठा था।
मैं उसे नजरअंदाज करते हुए अपनी दोस्त से बातें कर रहा था जो कि दिल्ली में प्रशासनिक सेवा चयन के लिए तैयारी कर रही थी, वो भी चाहती थी कि मैं भी कुछ करूँ लेकिन मैं तो अपने पिता के कमाए धन को ध्यान में रख निश्चिंत होकर अपनी मनमानी जिंदगी जी रहा था तभी सामने से मेरी दोस्त बोलती है-
राघव ! अब तुम्हे भी सम्भल जाना चाहिए यही समय है जब तुम अपने पैरों पर खड़े होकर अपनी पहचान बना सकते हो और अपने माता-पिता की चिंता को दूर कर सकते हो कल से तुम्हारे जीवन में भी एक नया व्यक्ति प्रवेश करेगा क्या उसके प्रति भी तुम्हारी जिम्मेदारियां यही होंगी क्या तुम इन सब बातों को दरकिनार करके हमेशा ऐसे ही मनमानी करोगे ?

मैं- देखो भूमिजा मैं तुम्हें सैकड़ों बार बोल चुका हूं मेरे पास किसी चीज की कमी नही सब कुछ तो हासिल है ही मुझे फिर मैं क्यों फोकट ही काम-काज के झंझटों में पडूँ?

भूमिजा- लेकिन राघव यह सब तो तुम्हारे पिता जी का कमाया हुआ है उसकी जीवनभर की मेहनत है इसमें तुम्हारा कमाया तो कुछ भी नहीं….

मैं- वो कमाते किस लिए हैं? मैं एक ही तो बेटा हूँ उनका सब मेरा ही तो है (मैं दम्भवश बोला)

भूमिजा- राघव ऐसा नही होता, सब कुछ है लेकिन तुम कुछ तो करो उनके साथ काम करके उनकी मदद ही कर दो ।

मैं-अरे यार तुम्हे कितनी बार बोला है तुम मुझे ये सब मत बोला करो तुमसे बात करना ही बेकार है झल्लाते हुए मैंने कॉल कट कर दिया ।

यह सब सुनते हुए मेरे बगल में बैठा हूँआ व्यक्ति मुस्कुरा रहा था उसके चेहरे पर सफलता के बाद आने वाले भाव भी थे,मैंने उसकी तरफ गुस्से से देखा तो वह और जोर से हंसने लगा ।

मैं-आपको हंसी किस बात की आरही है ? मेरे बगल में बैठकर क्यों हंस रहे है ?
वो अनजान व्यक्ति बोला मुझे तुम्हारे दम्भ और तुम्हारी अकर्मण्यता पर हंसी आरही है ।

मैं- मुझपे हंसने और उँगली उठाने का अधिकार आपको नही आप चुप हो जाइए या यहां से उठकर जाइये ।
वो व्यक्ति बोलता है मैं यही तो देख रहा हूँ तुम यह जानते हो इस कुर्सी पर मेरा अधिकार नही लेकिन तुम अपने अधिकारमय अंधकार में कुछ देख नही पा रहे हो अपने पिता के प्रति तुम्हारी सेवा और कार्य के प्रति श्रद्धा शून्य है ।
मैंने उसे उत्तेजित होकर कहा आप होते कौन हैं ये सब बोलने वाले और कितना कमाते है आप शायद जितना आप कमाते न हो उससे ज्यादा मैं खर्च कर देता हूँ ?
वो बोला कि सिर्फ इतना ही जानता हूँ कि तुम अब तक खुद को भी न जान सके तो कैसे जानोगे की खर्च कैसे किया जाता है, रही बात मेरे कमाने की तो में 1 रुपया कमाता हूँ उसने मुस्कुराते हुए बोला ।
मैं हैरत से उसकी तरफ देख रहा था रेमंड के कपड़े हाथ में HMT की घड़ी पहने हुए वह आदमी महज 1 रुपया कमाता है मैंने जिज्ञासावश पूछा कि 1 रुपये में आपका सब काम हो जाता है कैसे व्यवस्था चला पाते होंगे आप ?
वो बोला बिल्कुल हो जाता है मैं 1 रुपये में पूरी व्यवस्थाए चला पाता हूँ मैं एक रुपये को भी चार हिस्सो में बाट देता हूँ एक चवन्नी पानी में डाल देता हूँ,दूसरी चवन्नी का कर्ज चुका देता हूँ ,तीसरी चवन्नी कर्ज से दे देता हूँ और चौथी चवन्नी से अपना खर्च चला लेता हूँ यह बोलते हुए वह अपनी घड़ी की और देखने लगा ।
मैंने पूछा मैं कुछ समझ नही पाया आप पानी में डाल देते है, कर्ज लेते भी और देते भी है मैं बिल्कुल कुछ समझ नही पाया, क्या आप मुझे समझा सकते है ?
वो बोला अभी नहीं, मेरे जाने का समय हो चुका है मुझे घर पहुंचकर अपना कर्ज चुकाना है कल मिलते हैं इसी समय इसी जगह अभी मैं चलता हूँ………
मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था वो व्यक्ति उस दिन मेरे लिए जैसे रतजगा कर गया था मैं बस उसकी उन पहली भरी बातों में उलझा पड़ा था मुझे बस कल शाम की ही प्रतीक्षा थी…..शाम होते ही में गार्डन की और चल पड़ा और वहां बैठकर उस व्यक्ति का इंतज़ार करने लगा…।
थोड़ी ही देर मैं वो साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति अपनी मुस्कुराता हुआ आकर मेरे पास ये कहते हुए बैठ जाता है, क्या बात है बन्धु बड़ी चिंता में दिख रहे हो?

मैं- आप मुझे कल की उस बात का उत्तर दीजिए आप एक रुपये में सब कैसे कर लेते है जबकि यह असम्भव है ।
वो मुस्कुराता रहा करीब 5 सेकंड के मौन के बाद वह बोला तुम्हारा नाम क्या है ?
मैंने कहा राघव…..राघव भाटिया नाम है । आपका नाम क्या है ?
उसने बड़ी शालीनता से उत्तर दिया सुमन्त ।

मैं- अब आप मुझे उत्तर दीजिए मैं कल से ही अधीर हो रहा हूँ उस उत्तर को जानने के लिये ।

सुमन्त- राघव ! मैं एक A ग्रेड का रेलवे ऑफीसर हूँ महीने में पांच अंकों की तनख्वाह कमा लेता हूँ लेकिन पहले सुनो नीति कहती है किसी लड़की से उसकी उम्र और पुरुष से उसका वेतन नहीं पूछना चाहिए ।

मैं- मैं कल आवेश में बोली हुई बातों के लिए थोड़ा शर्मिंदा था मैंने उनसे माफी मांगते हुए उस 1 रुपये के चार भागों के रहस्य जानना चाहा वे बोले…..

सुमन्त- हाँ तो सुनो राघव में अपनी कमाई पूंजी के चार हिस्से कर देता हूँ पहला हिस्सा पानी में अर्थात में धर्म के लिए उसे खर्च करता हूँ वो मुझे वापस मिलेगा मैं ऐसी कामना से उसे धर्म में नही लगाता बल्कि धर्म से ही जीवन है सो मैं उसे एक हिस्सा देता हूँ , दूसरे हिस्से से मैं कर्ज चुकाता हूँ अपने माता पिता का जो उन्होंने मुझे बचपन से दिया है उस कर्ज से उऋण होने के लिए मैं अपना एक हिस्सा अपने माता पिता की सेवा में खर्च कर देता हूँ , तीसरा हिस्सा में अपनी संतान को कर्ज में देता हूँ क्योंकि मेरे माता-पिता ने भी मुझे कर्ज दिया तो यह मेरा कर्तव्य है मैं अपने बच्चों को भी उनका हिस्सा दूँ और जो चौथा हिस्सा बचता है उससे ही मैं अपने खर्च चलाते हुए अपनी भविष्यनिधि बचा भी लेता हूँ ।
राघव यही मेरी 1 रुपये की तनख्वाह है जिसे मैं चार हिस्सो में बाट देता हूँ। यह कहते हुए उस व्यक्ति की आंखों में चमक थी जो मुझे प्रेरित कर रही थी ।
मैं- मैं उस कुर्सी से उठकर उनके सामने घुटने टिकाकर एक दम मौन होकर बैठ चुका था,मुझे अपनी सारी गलतियों का अहसास हो चुका था । मेरे सर पर चल रहे उनके हाथ जैसे मुझे साहस दे रहे थे अपनी मंजिल की और बढ़ने का मैंने उन्हें रोज मिलने के वादे के साथ ही धन्यवाद कहा….उन्होंने पूछा अभी समय बाकी है,कहाँ जा रहे हो ?
मैं- सुमन्त सर मैं अब समय के मूल्य और अपनी जिम्मेदारी को जान गया हूँ…कहते हुए मैं पापा को लेने ऑफिस पहुंच गया जो सुबह मेरे कार घर रख लेने की जिद की वजह से सुबह बस से ऑफिस गए थे……………।

पण्डित योगेश शास्त्री
आष्टा,मध्यप्रदेश

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