एक राष्ट्र है एक ताल है।
प्रस्तुत कविता वैश्विक आपदा कोरोना काल की प्रथम लहर के समय लॉकडाउन की स्थिति में जब हम सब डरे सहमे से असमंजस की स्थिति में थे, तब हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा घर के एक अभिभावक की तरह सबमें उम्मीद की किरण जगाने हेतु प्रत्येक भारतीय का एक साथ एक समय पर आह्वाहन किया गया और हम सबने भी एकजुटता के साथ थाली, घंटा, शंखनाद, करतल ध्वनि से कोरोना की आपदा से इस देश को मुक्त करने का संकल्प लिया। यह कविता इन्हीं भावो को समर्पित है।
एक राष्ट्र है, एक ताल है
बस यही चतुर्दिक शोर है ।
जन-जन में रोमांच भरा
क्या भारत में नव भोर है?
सब एक साथ हुंकार उठे
है समक्ष जब विपत्ति खड़ी ।
न कोई भारत का सानी
समरसता जो यहां भरी।
है भिन्न जाति, समुदाय भिन्न
हैं धर्म भिन्न, भाषायें भिन्न ।
पर बात देश की होगी जब
हम है सहिष्णु, हम हैं अभिन्न ।
ललकार एक नेतृत्व की थी
जन- जन को उसने जोड़ दिया ।
इतिहास प्रणेता बन कर के
भारत को आत्म विभोर किया।
वो शंखनाद वो करतल ध्वनि
थाली घंटा की पुनि प्रतिध्वनि
बस पुनः पुनः दोहराती थी
प्राणों से प्यारा वतन हिन्द।
प्राणों से प्यारा वतन हिन्द।