एक राधा गीत गाती है
सिसकियों पर स्वर सजाती है ।
एक राधा गीत गाती है ।
एक टक नभ को निहारे स्वप्न ले दिनमान जागे ।
पर मिलन की कामना के स्वप्न हैं अतिशय अभागे ।
हम नियति से लड़ रहे पर, है असंभव पार पाना ।
एक होंगे या न होंगे यह कठिन होगा बताना ।
वो विरह में बुदबुदाती है ।
एक राधा गीत गाती है ।
काश! होता यह कि अपनी वर्जनाएँ तोड़ आते ।
काश! होता यह कि हम भी मोह जग का छोड़ पाते ।
साधते हम एक जैसा राग अपनी आत्मा से ।
चंद्रमा से प्रेम करते भय न खाते हम अमा से ।
पर अमा हमको डराती है ।
एक राधा गीत गाती है ।
हाथ के कंगन खनकतें रात – दिन हैं नाद करते ।
गीत मन के श्याम का गुणगान कर-कर, ध्यान धरते ।
मूँद कर अपने नयन हम आ गएँ हैं गाँव उसके ।
आ लगा दो री! महावर कह रहे हैं पाँव उसके ।
बात सपनों की रुलाती है ।
एक राधा गीत गाती है ।
तैरता है चित्र उसका दृग पटल पर मूक बनकर ।
और ध्वनियाँ रेंगती हैं श्रुति पटल पर कूक बनकर ।
कल्पना भर से उँगलियाँ पा सकें आभास सारे ।
इसलिए ही टूटते हैं री! गगन से कुछ सितारे ।
पीर की संझा-पराती है ।
एक राधा गीत गाती है ।
प्रशान्त मिश्रा मन