एक रात ऐसी भी
एक रात ऐसी भी आई जहन मे।
नींद खुली आधी रात
भूख से मेरा बुरा हाल
पर उठने का मेरा इरादा ना था।
लेकिन मैं उठा जागा और
लगा ढूढने मैं कुछ खाने को
लेकिन मुझे कुछ खाने को मिले ना।
खाना ढूंढते- ढूंढते लगी रात बीतने
अंत में मुझे मिला सेव-नमकीन खाने को।
मैं खुशी से फूला ना समाया
फिर लगा खाने सब भुला के
तो रात कैसे बीती पता ही ना चला।
सुबह नींद खुली तो सब सपना लगा।
फिर लगा मैं अपना काम करने।