एक रविवार जिंदगी में
काश कि कोई हमकों भी समझ पाए
एक रविवार जिंदगी में हमें दिलवाए
प्रेम प्यार से कोई हमारा सम्मान करें
कुछ हमारी सुने कुछ अपनी कह पाए
कोई तो बने मित्र केशव अर्जुन जैसा
जो जीवन मरण तक , साथ निभाए
कठिन दुख भरी जिंदगी के सफर में
जिसे देखकर हम भी कुछ मुस्कुराए
खुदा तेरे पास देने की कुछ कमी नहीं
फ़िर क्यों सुबह शाम हम गाली खाए
सुना कि तू प्रेम का भूखा रहता मोला
सदियों से कहती है यह चँचल हवाएँ
हम भी चाहतें पतझड़ में मधुमास हो
हम अपने बुढ़े माँ बाप के पैर दबाए
जिन होठों से नाम रखा बच्चों का
उनको बेटा बेटी कहकर हम बुलाए
उनकी मूक निगाहों के प्रशन यही
उनके सँग कैसे हम त्यौहार मनाए
आगज़नी हो या पत्थरबाज़ी कही
सबसे पहले आपदाओं पे हम जाए
फ़िर क्योँ फ़िर क्यों बता ख़ुदा मुझे
हम यहाँ पर मानव ना समझा जाए
हे मनोकामना इतनी तू पूरी कर दें
हम पोलिस फौजी समय पे घर जाए
तू ही ईश तू ही अल्लाह तूने कहा था
जो भी तू आदिशाक्ति समझ भावनाएं
क्यों राम सा बनवास नोकरी में यहां पे
क्यो नही हम चेन की नींद भी सो पाए
दुश्मन समझे चाहें हमकों यह जमाना भी
पर मातृभूमि के लाल तिरंगे में लिपटे आये
बस कुछ कर ऐसा चमत्कार तू मेरे मोला
सात फेरों के वचन रिश्तें नाते हम निभाए
अशोक सपड़ा हमदर्द दिल्ली से