एक यात्री( लघुकथा)
एक यात्री( लघुकथा)
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रात के दो बजे थे । रेलवे स्टेशन पर प्लेटफॉर्म पर ट्रेन रुकी । एक यात्री बदहवास हालत में ट्रेन के प्रत्येक डिब्बे को जोर से पीटे जा रहा था। सभी डिब्बे अंदर से चटकनी लगा कर बंद किए हुए थे।
यात्री रो पड़ा। कहने लगा “कम से कम दरवाजा तो खुला छोड़ दो ।”
खिड़की में से झांक कर देखा तो लोग पूरी बर्थ पर पैर फैला कर आराम से सो रहे थे । यात्री ने अब खिड़की पीटते हुए कहा “कम से कम मुझे बर्थ के एक कोने में या कम से कम जमीन पर ही सोने के लिए स्थान मिल जाए ! दरवाजा खोल दो ! ”
लेकिन किसी डिब्बे में किसी यात्री ने उसकी न सुनी। बस अब आखिरी डिब्बा ही रह गया था और ट्रेन चलने को थी ।
यात्री ने दरवाजे को खोलने के लिए हाथ मारा और खुशी से चीख उठा “दरवाजा खुला हुआ है !”
वह जल्दी-जल्दी दरवाजे में चढ़ा ।जैसे ही डिब्बे के अंदर उसने प्रवेश किया , आसपास के सोते हुए यात्रियों में से एक ने चीखकर कहा “अरे किसने यह दरवाजा खुला छोड़ दिया ? हमारी नींद खराब होती रहेगी रात भर ! दरवाजा बंद क्यों नहीं करते!”
नवागंतुक यात्री ने एक मिनट सोचा और फिर दरवाजे की चटकनी अंदर से बंद कर दी।वह भी एक खाली पड़ी बर्थ पर आराम से चादर ओढ़कर सो गया ।
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लेखक :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा,रामपुर (उत्तर प्रदेश )मोबाइल 999 761 5451