एक मोड़ आया
मैं भंवर से निकली, एक मोड़ आया।
न जाने कितने मोड़ में मोड़ आई।
तब जाकर छोर आया,
छोर से मिलकर पता चला, मैं पीछे बहुत कुछ छोड़ आई।
मेरी आत्मा मेरे दिल को शांत करने के लिए शांति ढूंढ रही थी
तभी एक शोर आया।।
ये शोर चीख चीख कर मुझसे कह रहा था ,
अब लौट चल
सातों समंदर पार कर लिए ,अब तो लौट चल।।
शायद यह वही शोर था
जिसे मेरे कानों को सालों से तलाश थी
हां यह वही था ,तभी तो
शायद तभी तो ,मुझे आठवां समंदर स्वयं को बता रहा था।
यह आठवां समंदर कुछ और नहीं
हां कुछ और नहीं
मेरा स्वयं का स्वयं से मिलना था।
शायद इसीलिए क्योंकि,
हां इसीलिए क्योंकि ,स्वयं ही सत चित आनंद है।।