एक मुर्गी की दर्द भरी दास्तां
खुदा करे तुम भी उसी खौफ से जिओ,
जिस खौफ से दिन रात मैं जीती हूं ।
एक पिंजरे में बंद अपने साथियों के साथ ,
ठूस ठूस के ऐसी बुरी तरह से जाती हूं ।
जैसे एक बोरे में राशन भर दिया जाता है ,
वैसे मैं तुम्हारी नज़र में राशन ही समझी जाती हूं ।
मैं तुम्हारी नज़र में भोजन के सिवा कुछ भी नहीं,
तुम समझते नहीं ,या समझना ही नही चाहते ,
मुझ में भी है जान , मैं भी एक प्राणी जीवित हूं ।
मगर तुम्हें क्या ! तुमने पिंजरे से निकाला ,
बेदर्दी से मेरी गर्दन पकड़ी और फिर खच्छ !!
कुछ इस खौफनाक तरीके से मैं मारी जाती हूं ।
यूं ही मौत के घाट मेरे साथियों को उतारा जाता है।
एक एक करके हमारा पार्थिव शरीर टुकड़ों में ,
तुम्हारे घर की रसोइयों में गोश्त रूप में पकता है ।
और थालियों में परोसकर स्वाद से खाया जाता है ।
खुदा करे तुम्हें भी ऐसी दर्द भरी मौत मिले ,
क्योंकि बेचने वाले से खरीदने वाला कम दोषी नहीं।
गर नहीं छोड़ा हमारे कत्ल के सिलसिले को ,
तो यह तुम पर एक दिन कयामत बनकर टूटेगा।
मैं मुर्गी एक बेजुबान ,कमजोर जीव ,बड़े दुखी मन से,
सिर्फ स्वाद के लिए हमारा खून करने वालों को ,
बद्दुआ देती हूं ।