एक मायूसी का जंगल
मां बाप का साया
सिर पर बने रहना
कितनी बड़ी बात होती है
बस उनका दिखते भर
रहना काफी होता है
न रहें तो
न सवेरा उगता है
न शाम ढलती है
न रात का सफर कटता है
एक मायूसी का जंगल
सिर उठाकर
मुझे धमकाता है कि
अब दिखा भरी
दोपहरी में
बिना मां बाप की
मासूम सी छांव के बिना
अकेला चलकर।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001