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10 Jun 2019 · 5 min read

एक मां की खुशी में समाहित है पूरे परिवार की खुशी

जी हॉं दोस्‍तों एक बार फिर हाजिर हूँ, आपके समक्ष इस लेख के माध्‍यम से आशा करती हूँ कि आप अवश्‍य ही पसंद करेंगे ।

वो कहते हैं न “मॉं खुश तो परिवार में खुशी ” एक बार युवाओं के आदर्श डॉ. एपीजे अब्‍दुल कलाम जी ने एमएस खन्‍ना डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद में शिक्षक की भूमिका में छात्र-छात्राओं को समाज में यूनीक पर्सनालिटी के तौर पर पहचान बनाने की सीख देते हुए, उन्‍होंने ” मॉं की खुशी को परिवार की खुशी का राज बताया ” और सही भी है न दोस्‍तों । “परिवार की खुशी में मॉं का खुश रहना जरूरी है, इसके लिए बच्‍चे ऐसा करें कि मॉं का दिल कभी न दुखे “।

अभीहाल ही में मोम्‍सप्रेस्‍सो के हैप्‍पीनेस सर्वे के अनुसार 70 प्रतिशत महिलाएं क्‍यों ,खुश नही है, यह बात हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर महिलाओं की खुशी किस बात में समाहित है । हमें कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए क्‍यों कि मॉं किसी भी परिवार के लिए केंद्र होती है, इसलिए हमें सबसे अधिक मांओं को खुश रखने की आवश्‍यकता है ।

दोस्‍तों आप इस बात से तो सहमत होंगे ही, कि प्राय: यह देखा गया है कि एक मॉं चाहे वह नौकरी या व्‍यवसाय करती हो या हाऊस वाईफ हो , लेकिन घर का बजट वह अच्‍छी तरह से तालमेल बिठाते हुए चलाना जानती है, ” कहते हैं कि एक औरत के हाथों में जब बजट हो तो सहेजना उसका स्‍वभाव है, सबकी खुशी उसका डीएनए “।

बजट घर का हो या देश का, बजट का मकसद क्‍या ? यह तय करना कि हाथ में जितना पैसा है और कितना खर्च होना चाहिए ? दवा ज्‍यादा जरूरी है या लग्‍जरी हॉलीडे ? इस महिने बच्‍चों की फीस भरना ज्‍यादा जरूरी है या नया सोफा खरीदना ? ये तो बात घर के बजट की, लेकिन बजट देश हो, तब भी बात यही होती है । देश को बंदूकें चाहिए या स्‍कूल ? मंदिर चाहिए या अस्‍पताल ? मूर्तियां चाहिए या नौकरियां ? खुशहाल जिंदगी चाहिए या झूठा गौरव गान ? “देश को पहली फुलटाईम महिला वित्‍तमंत्री मिली हैं, श्रीमती निर्मला सीतारमण, देश की पहली महिला रक्षामंत्री होने का गौरव भी उन्‍हीं के नाम है “। अगले महिने पहली बार बजट पेश करने वाली देश की महिला वित्‍तमंत्री होंगी । दुनिया के तमाम देशों के बजट के बीच अभी एक नया बजट आया है – न्‍यूजीलैंड का । न्‍यूजीलैंड की कमान संभाल रही महिला जसिंदा आरडर्न ने अपने मुल्‍क का बजट बनाते हुए न्‍यूजीलैंड को जनता का स्‍वस्‍थ और खुशहाल जीवन प्राथमिकता की लिस्‍ट में सबसे ऊपर रखा है और जीडीपी को दरकिनार कर दिया है । लग्‍जरी और डिफेंस को अलग करके सबको शिक्षा, अच्‍छा स्‍वास्थ्‍य , सबको घर,सबको नौकरी, सबको बेहतर जिंदगी । यही मकसद है, इस बजट का । जैसे दोस्‍तों घर का बजट बनाने वाली औरत ने तय किया हो कि रिश्‍तेदारों की शादी में उपहार देने और दिखावे पर खर्च करने से बेहतर है कि इन गर्मियों में बेटी को कॉलेज की साईंस ट्रीप पर भेजा जाए । डिज्‍नीलैंड घूमने से बेहतर है, क्‍यों न म्‍यूजियम चलें । मॉल में फालतू की शॉपिंग नहीं, आए दिन बाहर डिनर भी नहीं । अपने बच्‍चों को बजट चलाने के उद्देश्‍य को समझाते हुए थमाया एक गुल्‍लक और कहा , अपनी पॉकेट मनी का एक हिस्‍सा रोज इसमें डालना, ताकि एक दिन उन पैसों का बेहतर इस्‍तेमाल कर सके । ऐसा नहीं कि न्‍यूजीलैंड के पास बहुत सारा पैसा है, या दुनिया के बाकी देशों के पास उससे बहुत कम । पैसा कितना है यह सवाल न देश के लिए है और न रोजमर्रा की जिंदगी के लिए । सवाल होता है कि पैसे को कैसा देखा, कैसे बरता, कैसे संभाला, कहॉं डाला । कितना सोचा, कितना बिना सोचे झाेंक में नासमझी में गंवा दिया ।

जी हां मैं यह कहना चाहती हूं कि औरत के हाथ में जब बजट होता है, तो वह झोंक में कभी नहीं गंवाती । सहेजना उसका स्‍वभाव है, सबकी खुशी, सबकी बेहतरी, सबका सुख उसके डीएनए में है । वह 10 रूपए भी ऐसे सोचकर खर्च करेगी कि पैसे बर्बाद ना हो । उस 10 रूपए में से भी 8 रूपए ही खर्च करेगी और 2 रूपए उसमें भी बचा लेगी । आखिर यह यूं ही नहीं हुआ होगा कि पूरी दूनिया में सिर्फ बैंकिंग ही ऐसा क्षेत्र है, जिसमें महिलाओं ने इतनी प्रगति की है । भारत में भी बैंकिंग के अलावा कम ही ऐसे सेक्‍टर हैं, जिसकी सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठ महिला ने कमान संभाली हो ।

“बैंक की हेड़ महिलाएं बनी क्‍यों कि पैसा संभालना और बजट बनाना उन्‍हें अच्‍छी तरह से आता है “। उन्‍हें आता है, यह काम क्‍योंकि उनके दिल में ज्‍यादा प्‍यार है । सबकी बेहतरी सोच सकने की कूबत है । दुनिया में अपनी ताकत, अपना दंभ साबित करने के लिये महिला अरबों रूपए बंदूकों और टैंकों में नहीं फूंक देती । उसके हाथों में पैसों को मतलब है, उसके देश के परिवार के लोगो की बेहतरी, उनकी खुशी, उनकी शिक्षा, उनका स्‍वास्‍थ्‍य, जी हॉं दोस्‍तों उसको अपनी ताकत नहीं दिखानी होती है, उसको तो प्‍यार से दिल जीतना होता है सबका ।

अंत में यही कहना चाहूंगी कि हर घर में महिला या मॉं को सभी सदस्‍यों को समझने की जरूरत होती है । आपस में हर रिश्‍ते में दोस्‍ताना रखते हुए जिंदगी को आगे बढ़ाते चलिये । एक महिला या मॉं सबकी खुशी का ख्‍याल रखते हुए घर में सभी कार्य जब सुचारू रूप से संपन्‍न करती है, तो घर के सभी सदस्‍यों का भी फर्ज है कि उसका सम्‍मान करें, सामंजस्‍य के साथ उसका कहना भी मानें, कभी-कभी उसे पसंदीदा उपहार दें, उसके स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल करें साथ ही घर की हर छोटी से बड़ी बातों में उसका मत अवश्‍य लें ।

जी हॉं दोस्‍तों यह कहकर तो ऑंखें भर आती हैं कि आजकल के दौर में एक महिला घर, नौकरी, बच्‍चों की सहीं ढ़ंग से परवरिश और समस्‍त परिवार की देखभाल करते हुए बदले में उसे चाहिए रहता है केवल प्‍यार और उसके लिये जिंदगी भर वह हर रिश्‍ते को बखूबी निभाती है , लेकिन हॉं इस बदलते युग में उसके बच्‍चे आत्‍मनिर्भर बनकर कभी-कभी अपने हाथों से मॉं को ,खाना बनाकर खिलाएं तो यही उसके जीवन की सबसे बड़ी खुशी है । “हर मॉं चाहती है कि उसके बच्‍चें अच्‍छे पढ़-लिख जाएं और वे उससे बेहतर ‍‍‍‍‍स्थिति मे रहें, बस वे कहीं भी रहें …….प्‍यार से पूछें कि कैसी है तू मॉं तो वह बेहद खुश हो जाती है, जैसे उसके हाथ कोई खजाना मिल गया हो “।

जी हॉं दोस्‍तों, फिर कैसा लगा मेरा यह ब्‍लॉग ? अपनी अाख्‍या के माध्‍यम से बताईएगा जरूर । मुझे आपकी आख्‍या का इंतजार रहेगा ।

धन्‍यवाद आपका ।

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 235 Views
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